नार्थईस्ट ट्रिप के पांचवें दिन की दोपहर तक हम हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल देखने किसामा हेरिटेज विलेज पहुँच गए. आज का पूरा दिन और रात यहीं के नाम थी. हॉर्नबिल में हमको क्या-क्या देखना है, ऐसी कोई लिस्ट तो नहीं थी अपने पास, पर मन तो हॉर्नबिल में सबकुछ देखने का था. हालांकि, इसके लिए एक दिन बहुत कम था. जो फ़ेस्टिवल दस दिन तक चलता हो, उसको एक दिन में कैसे देख सकते हैं आप! यहां आकर हमको अपने उस सवाल को जवाब मिलता है कि लोगों को अपने लिए या अपने लोगों के लिए एक झंडे की क्या जरुरत पड़ती है! क्या झंडे आइडेंटिटी क्राइसिस के सिंबल हैं? और, अगर ऐसा है, तो क्या त्योहारों को भी इसी लीग में नहीं रखना चाहिए? भला सभी को अपने लिए एक अलग त्योहार की क्यों पड़ी रहती है? झंडों और त्योहारों के बिना कोई समाज नहीं चल सकता क्या?
हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल की शुरुआत दिसम्बर 1 तारीख़, यानि की नागालैंड दिवस से हो जाती है. वैसे, ये फ़ेस्टिवल सन 2000 में पहली बार मनाया गया था. फ़ेस्टिवल के हर एक दिन अनेकों कल्चरल परफॉर्मेंसेज़ और म्यूजिकल शोज़ होते हैं. इसमें नागालैंड की सभी 16 जनजातियाँ पार्टिसिपेट करती हैं और अपने ग्रुप के साथ नागा लोगों की संस्कृति और रहन-सहन को दिखाती हैं. साथ ही, फ़ेस्टिवल में नागालैंड के हेंडीक्राफ्ट, कपडे, बाँस के सजावटी सामान और लोकल खान पान की दुकानें लगी होती हैं. हॉर्नबिल सेलिब्रेशन का मेन पर्पज़ नागा लोगों और उनके अनोखे कल्चर को सेलिब्रेट करना है. नागालैंड घूमने के साथ, इन लोगों को जानने के लिए हम लोग फ़ेस्टिवल के शुरूआत में ही यहाँ पहुँच गए थे. हॉर्नबिल में होने वाले सभी इवेंट्स को देखने के अलावा हमारा मक़सद पूरा किसामा विलेज घूमना और यहाँ के लोगों से जितना हो सके उतना इंटरैक्ट करना था. अब हार्नबिल फ़ेस्टिवल सेलिब्रेट करने का और बेहतर आईडिया क्या हो सकता है!
एंट्री गेट पर पहुँचते ही हमने हॉर्नबिल के एंट्री-पास गेट पर बने काउंटर से ले लिए. छह लोगों का कुल 120 रुपए ही बना, बाक़ी कैमरे का अलग से 50 रुपए पर-कैमरा देना पड़ा. इससे पहले कि हम लोग अंदर घुसते, एंट्री गेट के ठीक सामने हमको एक टपरी विद अ व्यू दिखी. हमने होटल में नाश्ता तो किया था, पर हमने सोचा की अंदर जाने से पहले थोड़ा ठूस लें. भर पेट भटकने का मज़ा ही अलग होता है!
इसके अलावा नॉर्थईस्ट घूमते समय एक ट्रिप खाने की अलग से चलती है. ख़ासकर नागालैंड में, यहां आपको बहुत सारी नई सब्ज़ियाँ, मसाले और माँस खाने को मिलेंगे. हम लोग तो नॉर्थईस्ट ट्रिप की शुरुआत से ही भरपूर पेल रहे थे. नागालैंड में बैठ के खाने का मौका रोज़ रोज़ थोड़ी न मिलता है. खाना खा कर हमने हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल देखने के लिए एंट्री कर ली. मेन गेट के बाहर लोगों का लगातार आना जाना लगा ही हुआ था. जितना हम अंदर चलते गए उतने ज़्यादा लोग हमको दिखने लगे. एंट्री-रोड पर हमारे लेफ़्ट में सबसे पहले नागालैंड हॉर्टिकल्चर वालों का एग्ज़ीबिशन हॉल आता है. ये मौक़ा था, खाने की वो सारी नई चीज़ें नई देखने का जो हम अब तक नॉर्थईस्ट ट्रिप पर खाते आ रहे थे. हालांकि, हमारी जीभ उसका स्वाद नहीं पहचान पा रही थी. शायद अलग जगहों के खाने का स्वाद भाषाओं सा होता है, जिसका पता बिना खाए नहीं लगता!
नागालैंड को जानने के लिए सबसे पहले यहां की जियोग्राफी को जानना बेहद जरूरी है. नागालैंड हिमालय के पूर्वी हिस्सा में पड़ता है, मतलब कम ऊंचाई वाले पहाड़ हैं और दूर दूर तक फैली हरी-भरी घाटियां। यह सब एकदम घने वर्षा वन से टपा पड़ा है. भारी बारिश के चलते, इन जंगलों में कभी नमी की कमी तो होती नहीं। जिसकी वजह से यहाँ के जंगल हरे-भरे होने के साथ समृद्ध भी है. इनमें हज़ारों क़िस्म के जंगली फल-फ्रूट, सब्जियां, जड़ी- बूटी और खाने की न जाने कितनी चीज़ें उगती हैं. जैसे कि अनानास, इस फ्रूट का गढ़ है नागालैंड। जब तक हम यहां नहीं पहुंचे थे, तब तक हमको भी इस बात का कोई अंदाजा नहीं था. हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल की बदौलत नागालेंड के हॉर्टिकल्चर एग्ज़ीबिशन हॉल में हमको लगभग वो सारी चीज़ें देखने को मिली जो नागालैंड में खाई जाती हैं. इनमें अनानास के अलावा, कई प्रकार के लहसन, मिर्च, खरबूजे, तिल, कॉफ़ी इत्यादि आते हैं. किसी भी जगह के लोग वही खाते हैं जो उनको वहां की प्रकृति से मिलता है, या उस जगह की कंडीशन के हिसाब से उगता या उगाया जाता है. अब किसी भी जगह को जानने के लिए, सबसे पहले वहाँ के खाने के बारे में जानना बिलकुल जरुरी होता है क्योंकि हम वही होते हैं जो हम खाते हैं.
नागालैंड वॉर म्यूजियम – नागा लोगों की वीरता का एक छोटा सा प्रमाण
उन्नीसवीं और बींसवी सदी की बात करें, तो आपको समझ आएगा कि इस दौरान नागालैंड और यहाँ के लोगों को कितनी लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी थी. और इन लड़ाइयों के घाव यहां के लोगों के जहन में अभी तक हैं. इन घावों में सबसे गहरा घाव द्वितीय विश्व युद्ध का है जब जापानी फौज ने म्यांमार (बर्मा) के रस्ते मणिपुर के इंफ़ाल होते हुए कोहिमा शहर तक को अपने कब्जे में ले लिया था. उस समय की ब्रिटिश-इंडिया फौज ने नागा लोगों के साथ मिलकर जापानियों का डट कर सामना किया था और लड़कर अपनी जगह को वापिस हासिल किया. इस पूरे सीन में बहुत से लोग मारे गए. पूरे कोहिमा शहर में आपको इस युद्ध के निशान देखने को मिल जाएंगे. इस लड़ाई को “Stalingrad of the East’’ भी कहा गया. इसी बात से आप यहां हुए नुकसान का अंदाजा लगा सकते हैं. किसामा हेरिटेज विलेज में एक वॉर म्युज़ियम भी है! हालांकि लोगों से इंटरैक्ट करने और परफॉर्मेंसेज़ शूट करने के चक्कर में हम म्युज़ियम नहीं जा पाए! पर वॉर म्यूजियम जाना जरूरी था क्योंकि नागालैंड को एक सिरे से समझने का चांस भी आपको यहीं म्युज़ियम में मिलेगा।
म्युज़ियम के ठीक सामने नागालैंड टूरिज़्म का ऑफ़िस है और इसके दूसरी तरफ है फ़ेस्टिवल का ओपन एम्फी-थिएटर. यहाँ हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल के सारे प्रोग्राम होते हैं. इसके अलावा भी नागा लोगों की आपसी लड़ाइयों और भारतीय सरकार के साथ उनके छत्तीस के आंकड़े की वजह से जान-माल का काफ़ी नुकसान झेलना पड़ा. नागा लोगों ने समय समय पर कई छोटी बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी हैं. ज्यादातर लड़ाइयों का मकसद अपने लिए “फ्री नागालैंड स्टेट’’ स्थापित करना ही रहा ताकि नागा प्रजाति के लोग, चाहे वो कहीं के भी हों, अपने हिसाब से अपनी जगह पर रह सकें. इन लड़ाइयों में नागा लोगों ने काफ़ी खून बहाया है और इन सबका लेखा आपको वॉर म्युज़ियम में मिलता है. इसलिए यह जगह आप बिलकुल मिस नहीं कर सकते.
हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल की सबसे मेन जगह
एम्फी-थिएटर किसामा हेरिटेज विलेज में Mount Japhu के फुट-हिल्स में स्थित है. इस जगह को आप हार्नबिल फ़ेस्टिवल का केंद्र कह सकते हैं. हार्नबिल फ़ेस्टिवल के सारे मेन फंक्शन यहीं होते हैं. हालांकि एम्फी-थिएटर ओपन एयर होने की वजह से ज़्यादातर प्रोग्राम शाम को ही होते हैं. जब तक हम लोग इधर पहुंचे तब तक दोपहर के तीन बजने वाले थे. पोडियम में कैमरा मैन और दर्शकों की भीड़ होने लग गई थी. साथ ही नागा लोगों की ग्रुप्स भी अपनी पारंपरिक वेषभूषा पहनकर अपनी अपनी परफॉरमेंस के लिए वेट कर रहे थे. नागालैंड में कुल सोलह नागा प्रजाति के लोग रहते हैं जिनके नाम कुछ ऐसे हैं – Ao, Angami, Chang, Konyak, Lotha, Sumi, Chakhesang, Khiamniungam, Kachari, Phom, Rengma, Sangtam, Yimchungrü, Kuki, Zeliang and Pochury.
हम लोग भी अपने कैमरे लेकर इन लोगों के साथ बैठ गए. बारी बारी से नागा लोग अपने अपने ग्रुप के साथ आते हैं और अपने कबीले की शौर्यता, वीरता, साहस, युद्ध कला को अलग अलग ढंग से प्रेज़ेंट करने लगे. हमको यह सब समझने में कुछ समय तो लगा, क्योंकि सब कुछ एकदम हट कर था. ऐसे ही एक प्रस्तुति में एक चैलेंज शुरू हुआ. एक नागा कबीले के कुछ लोग एम्फीथियटर के बीच पहुँच जाते हैं और एक दूसरे की ताकत आजमाते हैं. अपनी शारीरिक क्षमता को दिखाने के लिए ये लोग 100 किलो का एक भारी पत्थर बारी बारी उठाते हैं. कुछ सफल होते हैं, कुछ नाकाम। इनकी देखम-देख दर्शकों में से भी कुछ लोग अपना हाथ आजमाते हैं. चैलेंज सिंपल होते हुए भी इतना कठिन होता है कि कइयों की हवा निकल जाती है. पर यह इवेंट, हार्नबिल अटेंड करने आए लोगों में एक अलग एनर्जी-सी ला देता है.
इसके बाद कुछ और पेरफ़ोर्मनस होती हैं. उनमें से एक सबसे उम्दा, जो हमको अभी तक याद है, वॉर पर होती है. इस पर्फोमन्स में नागा लोगों के दो झुंड मैदान में उतरते हैं. इन लोगों की भाषा से तो कुछ भी समझना मुश्किल होता है, पर इनकी ड्रेस, हाथों में तीर-भाले और तेज ललकारों से साफ़ पता लगता है कि यह एक सीरियस युद्ध का सीन है. दोनों ही गुटों के लोग पहले तो लड़ाई की तैयारी में जुट जाते हैं और फिर बनाई हुई रणनीति के हिसाब से एक दूसरे पर टूट पड़ते हैं. आपको सारी लड़ाई एकदम रियल नज़र लगेगी, सिवाए उनके हथियारों के, जो कि लोहे या पीतल के न होकर, बांस के बने होते हैं. जिससे कि आपस में लड़ते समय किसी को कोई नुकसान न पहुंचे। अपनी युद्ध कला और अपने लोगों के लिए लड़ने- मरने के जज़्बे के साथ ये लोग अपने हीरोइज़्म का भी बेहतरीन इज़हार करते हैं. पर इस वाले इवेंट ने हमको सोच में डाल दिया कि एक ऐसे समाज को, जो कि आलरेडी वॉर की वजह से नुकसान झेलने के बावजूद , उसको ऐसा हीरोइज़्म दिखाने से क्या मिलता है।
सारे परफॉर्मेंसेज़ देख कर हमको आख़िरकार वो चीज़ समझ आती है जिसके लिए नागा लोगों का यह परफॉर्मेंस होता है. परफॉर्मेंसेज़ का टॉपिक इतना सीरियस होते हुए भी सब मजाकिया तौर पर हो रहा होता है. नकली गन, नकली गोली और मारना मरना सब नकली। हालाँकि इसी परफॉर्मेंस के थ्रू ये लोग युद्ध के मैदान में होने वाले नुकसान को दिखाते हैं. यही इस परफॉर्मेंस का मकसद होता है. असल वॉर की एक पैरोडी करके ये लोग ह्यूमंस की लड़ाई वाली मानसिकता पर गहरी चोट करते हैं. बेशक इन लोगों में इस बात की समझ पर्सनल एक्सपीरियंस के बाद आयी हो, पर दर्शकों को अपनी पर्फोमन्स से इस बात पर सोचने को मजबूर करते हैं.
ऐसी कई सारी, हिला देने वाली परफॉर्मेंसेज़ देख कर कोई भी हिल जाएगा। हमको तो जैसे इस पेरफ़ोर्मनस में नागा लोगों का सुख-दुःख, दर्द और दवा सब दिखाई दे गया. यही लेसन लेकर हम लोग हॉर्नबिल देखने आगे बढ़ते हैं.
हार्नबिल फेस्टिवल का मेन मार्केट
मेन एम्फीथियटर के राइट साइड में हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल का बैम्बू पवेलियन है. यह जगह एक मार्केट के माफ़िक है, इस जगह आपको नागालैंड में पाए जाने सभी चीज़ें दिख जाएंगी. इस पूरे एरिया में कई सारी दुकानें और स्टॉल लगे होते हैं. यहाँ से आप क्रॉस बो से लेकर खुकरी, जापानी तलवारें, बाँस से बनी कटलरी, फर्नीचर, कपड़े और नागा लोगों के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी चीज़ें खरीदी जा सकती हैं. यह सारा समान नागालैंड में नागा लोगों के हाथों का ही बना होता है. ट्रिप पर आगे निकलने की वजह से हमारा कुछ खरीदने का इरादा तो नहीं था पर यह सब चीज़ें एक बार देखना तो बनता था. निर्भय योद्धा होने के साथ नागा लोग कितने कुशल कारीगरी हैं, यह चीज़ आपको यहाँ देखने को मिल जाएगी।
यह जगह नागालैंड के इंडस्ट्री और कॉमर्स डिपार्टमेंट द्वारा देखा जाता है. इसी तरफ आपको इंडिया पोस्ट वालों का भी काउंटर मिलेगा. यहां से आप अपने यार- दोस्तों को पोस्टकार्ड और लेटर्स लिख कर भेज सकते हैं. एक पोस्ट कार्ड की कीमत मात्र दस रुपए. घर से नॉर्थईस्ट घूमने निकलने से पहले ही हमने इस बात का ऐलान कर दिया था. फ़ेस्टिवल में परफॉर्मेंसेज़ और बांस का बाज़ार देखने के बाद हम इसी काम में लग गए. इसके साथ साथ हमारी शूटिंग चालू थी ही.
बाजार के पीछे की बस्ती — टेंट्स, कैफ़ेज़ और मस्ती
पोस्टकार्ड पोस्ट करने के बाद हम बाक़ी विलेज का चक्कर मारने निकल लिए. शाम हो चुकी थी, पर अभी अँधेरा होने में समय था. फेस्टिवल का असल मज़ा अब आना शुरू हुआ था. धूप के जाते ही फेस्टिवल में भीड़ बढ़ गई. जो लोग अपने अपने ठिकानों में घुसे बैठे थे, बाहर निकलकर फेस्टिविटी में चार चाँद लगाने लगे. बम्बू पवेलियन की पिछली साइड,थोड़ा सा आगे जा के, कैंपिंग एरिया आता है. हॉर्नबिल एक दिन का इवेंट तो है नहीं, दस दिन लोगों के रुकने का प्रबंध यहीं पर टेंटो में था. हमें भी रात में अपने रुकने का जुगाड़ करना था. ख़ुद का टेंट तो हम साथ लेकर चल रहे थे, पर टेंट लगाने के लिए खाली जगह की जरुरत थी. जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल के दौरान नागालैंड में स्टे का सीन ही सबसे डिफिकल्ट है. हॉर्नबिल देखने देश- विदेश से इतने लोग आते हैं कि सब होटल – होमस्टे फुल हो जाते हैं.
टेंट के लिए जगह ढूंढते ढूंढते हम विलेज के पिछले हिस्से में पहुँच गए. यहां रुकने के लिए टेंट या अपने टेंट लगाने की जगह तो नहीं दिखी, पर बांस से बने कैफ़ेज़ का एक पूरा गांव मिल गया. जैसे जैसे अँधेरा हो रहा था, यह पूरा एरिया जगमगाने लगा. म्यूज़िक के साथ इन कैफ़े से खाने और बियर की खुशबु उड़ रही थी. और सारा क्राउड भी पार्टी-मोड में आने लगा था. हालांकि महफ़िल शुरू होने में अभी थोड़ा टाइम लगना था. हमनें सोचा कि पार्टी में कूदने से पहले हमे अपने रुकने का जुगाड़ कर लेना चाहिए. किसामा विलेज के अंदर तो यह मुमकिन नहीं लग रहा था. यही सोचकर अपन लोग फेस्टिवल से बाहर जाकर रुकने का जुगाड़ ढूंढने में लग गए. थोड़ी देर इधर-उधर भटकने बाद हम लोग उसी टपरी पर जा पहुंचे, जहाँ हमने हार्नबिल फेस्टिवल की एंट्री से पहले खाना खाया था. हमारी मानें तो बात करने से लगभग सभी समस्या हल की जा सकती हैं. यहाँ भी,भाषा की पाबन्दी होने के बावजूद, हमारी बात बन गई. टपरी के बराबर में ही हमको टेंट लगाने की जगह मिल गई और रुकने के साथ रात के खाने का भी जुगाड़ हो गया.
हार्नबिल फेस्टिवल वाली रात
एक बार रात में रुकने और खाने का सीन सॉर्ट हो गया तो हम लोग वापस फेस्टिवल में आ गए. फ्री माइंड होकर अब हार्नबिल में चिल्ल करने का टाइम था. रात के अंधेरे में पूरा किसामा विलेज एकदम मैजिकल लगने लगा था. ऐसा लग रहा था मानों हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल तो अब शुरू हुआ है. सबसे पहले हमारी टोली ने कैफ़े वाले एरिया पर ही धावा बोला. वहां से उठती खुश्बू ने ख़ुद ब ख़ुद हमें उधर खींच लिया। पोर्क और लोकल राइस बियर — बस हमारा सीन तो सेट था. अच्छे से भंड होने तक हम लोगों ने एक कैफ़े में बैठकर चिल्ल किया. एकदम मदमस्त कर देने वाली शाम थी. हर कैफ़े में अलग म्यूजिक, अलग माहौल बना हुआ था. भंड होकर अब फेस्टिवल में चक्कर लगाने का मज़ा था. हम लोग निकल लिए और जा पहुंचे मेन एम्फीथियटर. अब का यहाँ माहौल एकदम उल्टा हो चुका था.
यहाँ फिलहाल एक म्यूजिक कॉन्सर्ट चल रहा था. नार्थईस्ट के जाने माने लोकल रॉक-मैटल बैंड्स परफॉर्म कर रहे थे. मोश-पिट के लिए अच्छी खासी भीड़ जमा हो रखी थी. एक के बाद एक दमदार पर्फ़ोर्मनस का तांता लगा हुआ था. Metallica, AC-DC, Lamb of God और Steven Wilson के गानों की कवर के साथ ये लोग अपनी ओरिजिनल क्रिएशन्स भी बजा रहे थे. इन बैंड्स का ओरिजिनल साउंड सुनकर और स्टेज पर इनकी पर्फोमन्स देखकर हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी. दिल्ली तक में ऐसे रॉक शो देखना मुमकिन नहीं। नॉर्थईस्टर्न बैंड्स बढ़िया बजाते हैं, ये हमने सुना था, पर इतना बढ़िया कि एक दम प्रो, इसका आईडिया नहीं था. वैसे अगर आपको नहीं पता तो बता दें कि नागालैंड की अधिकतर आबादी क्रिश्चन है और यहां की फर्स्ट लैंग्वेज इंग्लिश. आप इसी बात से अंदाज़ा लगा लीजिए की नागालैंड में मेटल म्यूजिक का सीन कितना स्ट्रांग होगा. म्यूजिक में डूबे हम लोग चीज़ों को समझने की जगह अब बेसुध झूम रहे थे.
नागालैंड को प्रमोट करने के साथ, हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल का मकसद एन्जॉय करना है. आख़िरकार यह बात हमको समझ आने लगी थी और अपन लोग हॉर्नबिल और नागा लोगों के साथ इस जश्न का हिस्सा बन चुके थे.
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