चैप्टर 3 (पार्ट 1)
“ नहीं जा सकते” — Narry हफ़्ते भर बाद वापस आया था। ये बन्दा, दिल्ली जैसे शहर में माँ के हाथ का खाना खाकर भी पथरी-पीलिया जैसी बीमारियों से बच नहीं पाता है! हमने भी इसको बाहर खाना खाने वाले बन्दों के लिए एक्ज़ाम्पल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. सबसे ऐन वक़्त पर हमारा ऑपरेशंस वाला बन्दा जॉन्डिस की रिपोर्टें लेकर मेडिकल की छुट्टियों के जुगाड़ में लगा था. और तैयारी इस लेवल तक पहुँच गई थी कि हम लोग यही डिसाइड नहीं कर पा रहे थे कि किसको ले जाएं और किसको नहीं। एक तो इनएक्सपीरियंस और दूसरा एक्ससाइटमेंट — हमने ग़लतियाँ करने की शुरुआत कर दी थी. 5 बाहर वाले और 5 अपनी टीम से — कुल 10 लोगों के साथ प्लान फाइनल करके Narry घर पर आराम कर रहा था. अब ये जानकर चलिए कि नरेंद्र भाई के लिए आराम का मतलब आराम होता है – फोन, देश दुनिया सब से परे! जब वापस आया तो पता चला की लोग 15 हो गए हैं.
बाल कांड – Le Ladakh (चैप्टर 1)
इधर हुआ यह कि लोग हमें पेयर्स में मिलने लग गए. कनाडा की मिशेल कॉफ़मैन से मिलना तय हुआ। कनॉट प्लेस वाली पालिका मार्किट के ऊपर बने पार्क में हम मिशेल से मिले। अब उनके हिसाब से उनको पार्टनर चाहिए था, अपनी परफॉरमेंस के लिए। ट्रिप के हेडकॉउंट में एक बन्दा बढ़ गया। एक के बढ़ने की वजह से मिक्स एंड मैच करके हमने जो पैक डिज़ाइन करने का सोच था वो अब बिगड़ गया। क्योंकि अब योग वाले दो हो गए। और विज़ुअल आर्ट वाले की जगह फाइनली खत्म होती दिख रही थी। इसलिए, क्योंकि हमें मिल गया एक क्लाउन। और साथ में थे म्यूज़िक के लिए मेटल बजाने वाले उत्कर्ष श्रीवास्तव और गाने वाले आबिद पाशा। वैसे आबिद बाइक्स और एंटीक्स क्यूरेट करते हैं – एक्सपेडिशन पर खुद की रिस्टोर की हुई कॉन्टिनेंटल से चलने वाले थे! साथ में खाने पीने और बेसिक फ़िटनेस का ध्यान रखने के लिए हमारे साथ जितिन चल रहे थे – पिताजी के पैसों से मिली अपनी नई बुलेट पर!
बाल काण्ड – Le Ladakh शुरू होने से ठीक पहले तक (चैप्टर 2)
एक अनदेखे, अनकहे और अनसुने गोल की तरफ़ हम निकल पड़े थे। तय यह हुआ था कि जो लोग बाहर वाले परफॉर्मर्स होंगे, उनके खर्चे का कुछ हिस्सा हम उठाएंगे ताकि उनके लिए एक मोटिवेशन भी रहे और कम्फॉर्ट भी – अब कहाँ पैसे होते हैं अपनी उम्र के अपनी तरह से काम करने वाले बन्दों के पास। पर पैसे तो हमारे पास भी नहीं थे। और अगर हम किसी और को आर्टिस्ट मान रहे थे तो खुद को क्यों न मानें? कॉर्पोरेट कल्चर में आपको किसी भी आईडिया पर बात करने से पहले कई प्रश्नवाचक सवालों के जवाब देने होते हैं – what, why, when, how, for whom फलाना ढिमकाना। अपने अंदर के कलाकार की गरीबी को हमने नकार दिया, पैसे जुगाड़ने शुरू किया गया। फंडिंग, स्पॉन्सरशिप, सेविंग्स, कर्ज़े – सब का दरवाज़ा खटकाना शुरू किया गया।
अभी कुछ 15 दिन ही बीते थे इस आईडिया को। ऐसे में आपकी टीम की ऑपरेशंस देखने वाला बन्दा आकर आपको बोलता है कि ये नहीं हो सकता, मतलब इतने लोग नहीं जा सकते और ऐसे तो बिल्कुल नहीं जा सकते। कैसे? कितने लोग फाइनल हुए? आगे गाड़ी का जुगाड़ कैसे हुआ? कौन कौन बंदे गए? मिचेल का पार्टनर कौन था? सब अगले एपिसोड में।