Ashutosh Verma in Turtuk

A Reader’s Travelogue To Ladakh | प्रकृति का एक खूबसूरत तोहफ़ा – लेह, लद्दाख

करीब दो महीने पहले मैंने फैसला लिया कि इस बार लेह-लद्दाख के सफ़र पर जाऊंगा. फ़िल्मों में दिखने वाले लद्दाख के पहाड़ों, झील, नदियों और खूबसूरत रास्तों को अपनी आंखों से देखने की तमन्ना थी. सितंबर में मैंने अपनी ये ख़्वाहिश पूरी की. मैं ये ज़रूर कहूंगा कि लद्दाख की ट्रिप मेरी जिंदगी के यादगार लम्हों में से एक बन गया. मैं अपनी इस यात्रा के कुछ खास पलों को आप सबके साथ बांटना चाहता हूं. हो सकता है कि ये आपकी अपनी लेह-लद्दाख की यात्रा को प्लान करने में कुछ मदद कर सकें.

तो पहुंच गए हम लेह …

The city of Leh as seen from height
लेह शहर

कहते हैं कि लेह तक (श्रीनगर से कारगील होते हुए लेह) और लेह से आगे का सफ़र बाइक से तय करने का मजा ही अलग है. बेशक! लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि कार में बैठकर घूमने से ये मजा कम हो जाएगा. हमने दिल्ली से लेह तक की फ़्लाइट की. सफ़र से कुछ महीने पहले बुकिंग करना फ़ायदेमंद हो सकता है. हमें फ्लाइट में बैठे-बैठे ही लद्दाख ने ये बताना शुरू कर दिया कि मैं इतना अद्भूत क्यों हूँ. कई हज़ार फ़ुट की ऊंचाई से भूरे, रेगिस्तानी पहाड़ों और नदियों का नजारा बेहतरीन था.
लोगों का कहना मानते हुए, पहले दिन हम 24 घंटे तक अपने गेस्ट हाउस से ज्यादा दूर नहीं निकले. हमने लेह मार्केट के करीब एक गेस्ट हाउस लिया, जिसकी सलाह हमें बावरे बंजारे ने दी थी. रूम की खिड़की खोली तो सामने सूखे पहाड़ पर जमी बर्फ़ और उस पर सूरज की किरणें उसे सुनहरा कर रही थी. कुछ देर तक मैं गर्म चाय का प्याला पकड़े उसी को देखता रहा. हम गेस्ट हाउस से 10-15 मिनट पैदल चलकर लेह के मेन मार्केट तक पहुंच जाते थे.

शांति की तलाश में …

The Shanti Stupa is among the most popular pa]laces to visit in Ladakh
शान्ति स्तूप

अलगे दिन हम अपने गेस्ट हाउस से एक मॉनेस्ट्री देखने निकले. हमने वहां तक पैदल जाने का फैसला लिया. करीब 10 मिनट पैदल चलने और 560 सीढ़ियां चढ़ने के बाद हम शांति स्तूपा पहुंचे. जैसा नाम वैसी जगह. बुद्ध के चेहरे और आंखों की तरह शांत. एक जापानी मोंक ने विश्व शांति के प्रतीक के तौर पर इस स्तूप को बनाया गया था.

और रोड ट्रिप शुरू हुआ

Road Trip To Ladakh
रोड ट्रिप की शुरुआत

तीसरे दिन हमारा रोड ट्रिप शुरू हुआ. यह भी समझ में आया कि रोड ट्रिप टू लद्दाख इतना फ़ेमस क्यों है. यहां एक जरूरी बात आपको बता दूं कि कुछ जगहों (जैस कि नुब्रा वैली और पेंगॉन्ग झील) पर जाने के लिए, आपको परमिट लेना होगा. ये परमिट आपको लेह के टूरिज्म डिपार्टमेंट (लेह मार्केट के पास) से मिलेगा. परमिट लेने के बाद हम खरदुंग-ला पास पहुंचे. दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल जगह. खरदुंग- ला पास समुद्र सतह से 18,380 फुट की पहुंचाई पर है. 

Ashutosh Verma at Khardung La Cafe
ये लोग कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे ऊंचा कैफ़े है

यहां हम एक छोटा सा ट्रैक करते हुए, कुछ और ऊंचाई पर पहुंचे. ऊंचाई पर पहुंचने पर ऑक्सिजन की कमी महसूस हुई. लेकिन, जब नजर घुमाकर देखा तो सांस थम सी गई. बर्फ़ीली पहाड़ियों का अद्भूत नजारा. खरदुंग-ला होते हुए हम एक छोटे से गांव तुरतुक पहुंचे. पूरे रास्ते सूखे पहाड़, जिनका कभी रंग बदलता था, तो कभी आकार. ऐसे पहाड़ शायद ही कहीं देखने को मिलें. रोड के साथ-साथ शांति से चलती श्योक नदी, जैसे कह रही हो कि मैं साथ नहीं छोडूंगी. वैसे, इस नदी को ‘River of Death’ भी कहा जाता है.

कभी न भारत में था न पाकिस्तान में…

People of Turtuk
असद भाई जान

करीब 6 बजे शाम को हम लोग तुरतुक पहुंचे. तुरतुक पहुंचते ही ऐहसास हुआ कि मानों किसी मेडिटेशन सेंटर में आ गए. गाड़ी रूकी और दरवाजा खुलते ही एक शख्स ने पूछा- बावरे बंजारे? मैंने कहा, जी हां. फिर उन्होंने हंसते हुए हाथ मिलाया और अपने पीछे आने का इशारा किया. इन जनाब का नाम है असद खान. हम असद भाई के होम स्टे में ही रूके. होम स्टे में बहते पानी की आवाज, खेत और पहाड़ों ने समा बांध दिया. वहां पहुंचने के लिए, पानी के नाले पर बना एक छोटा ब्रिज, क्रॉस करना पड़ता है. ब्रिज क्रॉस करते ही एक कैफे और होम स्टे.

village of turtuk

दरअरल, इस जगह को बल्टिस्तान कहूं, तो भी गलत नहीं होगा. 1947 के बंटवारे के बाद ये गांव न भारत के हिस्से में था न ही पाकिस्तान के हिस्से में. 1971 की लड़ाई के बाद इसे भारत में शामिल किया गया. ये गांव खेतों, पहाड़ों, साफ पानी-हवा, अप्रिकोट (फल), बेहद सरल लोगों के साथ-साथ कहानियों का भी गांव है. यहां बेहद पुराना बल्टिस्तान के राजाओं का एक म्यूजियम है. यहीं आपको इस गांव का पूरा इतिहास मिलेगा, जिसकी कहानी राजवंश के एक सदस्य की जुबां से सुनने को मिलेगी. उनसे मेरी काफी बातचीत भी हुई. इस गांव से आपको पाकिस्तानी पोस्ट भी नजर आएगी, जो मात्र 9 किमी की दूरी पर है.

जानिए तुरतुक गाँव के बारे में, इस फ़ोटो ब्लॉग के ज़रिए

सनसेट और ऊंट की सवारी

Camel Ride  in Nubra Valley Of Ladakh

अगले दिन दोहपर को तुरतुक से निकलकर हम हुंदर (नुब्रावेली) पहुंचे. यहां हमने ठंडे रेगिस्तान में दो कुबड़ वाले छोटे कद वाले ऊंट की सवारी की. सुरज ढलने के साथ-साथ दूर-दूर तक नजर आता ये रेगिस्तान देखने लायक था. यहां हमने एक टेंट में रात गुजारी. 

Camel ride in Nubra Valley

झील के किनारे …

Ashutosh Verma near Pangong :Lake

सुबह नाश्ता करने के बाद, नुब्रावेली से निकलकर हम लोग डिस्किट मॉनेस्ट्री देखते हुए पेंगॉन्ग झील तक पहुंचे. वहां पहुंचने से पहले अच्छी खासी सड़क अचानक पथरीली सड़क में बदल गई. वैसे उसे सड़क कहना भी सही नहीं होगा. हमारे ड्राइवर नामग्याल ने बताया कि हर साल बर्फ पिघलने के बाद यह सड़क खराब हो जाती है और उसे दोबारा बनाना पड़ता है. नुब्रावेली से 5 घंटे का सफर तय करने बाद पेंगॉन्ग झील नजर आने लगी. जैसे-जैस झील करीब आ रही थी, हमारी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. वहां पहुंचते ही हमने लकड़ी की प्लाई से बने कॉटेज को बुक किया, उसमें सामान रखा और झील की ओर दौंड पड़े.

Pangong Lake in LAdakh
135 किमी लंबी इस खारे पानी की झील का मात्र 35 फीसदी हिस्सा भारत के पास है!

135 किमी लंबी इस खारे पानी की झील का मात्र 35 फीसदी हिस्सा भारत के पास है और बाकी चीन के पास. झील का बंटवारा तो हो गया लेकिन उसका पानी सरहद की दोनों ओर एक समान बहता है. झील का पानी कांच की एक दम साफ. झील ने कई बार अपना रंग बदला. कभी गरहा नीला, कभी नारंगी, कभी हरा, तो कभी आसमानी.

टूटते तारे और आकाशगंगा

रात को खाना के बाद हमें मिल्की-वे के बारे में पता चला और ये भी कि यहां टूटते तारे भी नजर आएंगे. सभी टेंट की लाइट बंद होने के बाद जब सिर उठाकर देखा तो, हैरान हो गए. अंधेरे में जहां तक नजर जाती, वहीं सिर्फ चमकते तारे ही नजर आ रहे थे. हमारे साथ-साथ कुछ 4-5 लड़के और थे, जो यही देखने के लिए जगे हुए थे. कभी कोई कहता कि वो रहा टूटता तारा, वो रहा टूटता तारा. लेकिन जब तक उस तरह देखते वह गायब हो चुका होता. मैं भी तरसी निगाहों से आसामन की ओर टक-टकी लगाए देखता रहा कि मुझे भी एक बार दिख जाए. आखिरकार, मुझे एक नहीं दो बार टूटता तारा दिखाई दिया. आधी रात तक यह सिलसिला चलता रहा. साथ मिले लोगों ने झील किराने और आकाशगंगा के साथ हमारी फोटो भी ली. ये दृश्य हमारी आंखों में हमेशा के लिए बस गया है.

वापस लेह

सुबह पेंगॉन्ग झील पर सूर्योदय देखने के लिए हम 6 बजे ही उठ गए. झील पर सूरज की रोश्नी पड़ते ही उसका रंग बदलने लगा. बेहद सुंदर. सुनहरी झील और पहाड़. यह देखने के बाद हम वापस लेह की ओर रवाना हो गए. रास्ते में हम चांग ला टॉप पर रुके, जो कि समुद्र सतह से 17,688 फुट की ऊंचाई पर है. शाम होते-होते हम लेह पहुंच गए.

दो नदियों का मिलन  

Sangam of Indus and Zanskar Rivers in Ladakh is a must see place near Leh

अगले दिन हम लोग हॉल ऑफ फेम गए, जोकि बॉर्डर पर शहीद हुए हमारे सैनिकों की याद दिलाता है. फिर हम मैंगनेटिक हील देखते हुए संगम प्वॉइंट पहुंचे. इंडस नदी और झंस्कार नदी का संगम. इंडस नदी जो कि बेहद शांत थी और दूसरी झंस्कार नदी जिसका प्रवाह बेहद तेज. दो नदियों का पानी आपस में टकरा रहा है, लेकिन मिल नहीं रहा. इसके बाद, हम पत्थर साहब गुरुद्वारा गए, जहां हमने लंगर खाया.

यह दिन हमारे लेह-लद्दाख ट्रिप का आखिरी दिन था. हम यही सोच रहे थे कि काश कुछ और दिन मिल जाते. गैर, लेह-लद्दाख की खूबसूरती और वहां के भोले-भाले लोगों की तारीफ जितनी की जाए, कम है. जैसे-जैसे सफर बढ़ता गया हरियाई, झील, नदियां, पहाड़, हमारा मन मोहते रहे. हम इन सारी हैरान और चकित कर देने वाली यादों को अपने कैमरे में कैद किए वापस लौट आए.

आशुतोष पेशे से लिंग्विस्ट हैं और शौकिया ब्लॉगर हैं. ऑटोमोबाइल मैगज़ीन चलाते हैं, नाम है NexgenDrive.com! जब इन्होने हमसे Ladakh Trip का अपना प्लान शेयर किया तो हमने भी थोड़ी मदद की. रोड ट्रिप के लिए Le Ladakh ट्रिप पर मिले नामग्याल भाई की गाड़ी का बंदोबस्त किया गया, चन्दन गेस्ट हाउस, लेह वाली दीदी को फोन मिलाया गया और तुरतुक वाले Bawray Banjaray Home पर असद भाई जान को इत्तला कर दिया गया. और एक सौदा भी हुआ, की आशुतोष वापस आकर अपने इस ट्रिप की कहानी शेयर करेंगे. सौदा आज पूरा हुआ!

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