चैप्टर 2
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जब ऑफिस का काम और मन का काम एक हो तो एक अलग भसूड़ी होती है! ऊपरी तौर पर लगता है कि यही तो ‘सेट’ होना होता है! मन का काम, काम का दाम! और सीखने के लिए दुनिया भर के रिसोर्सेज़! पर अगर आपमें कीड़ा है तो आप यहाँ सेट नहीं होते हो! इससे आगे ही सारी भसूड़ियाँ शुरू हो जाती हैं!
तो ऑफ़िस में ट्रैवल डोमेन के लिए डिजिटल कंटेंट बनाना और घर आकर बावरे बंजारे बन जाना – इंस्टाग्राम और फेसबुक का सहारा लिया गया, फिर गूगल की ब्लॉगर सेवा का फायदा उठाया गया, उस पर त्रिउंड का पहला ब्लॉग चिपकाया गया, अपनी पर्सनल ईमेल के सिग्नेचर में ब्लॉग का लिंक अपडेट किया और हो गए खुश! ये वाली ख़ुशी आपको कॉम्प्लेसेन्ट बना देती है. आप फ़िर से सेट होने वाली सिंड्रोम का शिकार होने लगते हो!
2017 की बात है! पिछली कंपनी छोड़े लगभग डेढ़ साल हो चुके हैं. तो पहली बार जब “फिर नौकरी छोड़ दिया” का वाक़या हुआ तो तीसरी बार अब काम कर रहे थे एक ब्रिटिश ट्रैवल कंपनी के कंटेंट पर! ऑफ़िस में तीसरा दिन है, हॉल में ही बने एक मीटिंग कम डाइनिंग रूम में लंच चल रहा है. यहाँ लोग अपने अपने हिसाब के लोगों के साथ बैठ कर ही लंच करते थे! इस दिन से पहले तक अपना अकेले का ही सीन था.
“सो, डू यू ट्रेवल?” — Olli ने लेग पीस को पूरी तन्मयता से साफ़ करते हुए पूछा!
“हाँ, थोड़ा बहुत!” — इधर थोड़ी शेखी बघारने वाली बात थी!
क्योंकि पिछले ही कल Olli की प्रोफाइल को स्क्रॉल कर लिया गया था. कुछ ऐसी जगहों की फ़ोटोज़ देखी थी जो उस समय की समझ के हिसाब से इम्प्रेस करने लायक थीं!
Olli तब 18 दिन की पैदल स्पिति ट्रिप पूरी कर के इस नई नौकरी में आया था. उस समय ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के मोह में फंसा हुआ था. हम छोटे शहरों के मिलेनियल्स को अगर एक बार आंत्रेप्रेनॉर बनने का कीड़ा लग गया तो मामला रिबेलियन लेवल का हो जाता है. Olli फ़ोटोग्राफ़र है. ऊपर से ट्रैवल करने और ट्रैवलर बनने की होड़ में इतना घूम चुका है कि अब कहीं भी, कैसे भी घूम सकता है! इस आदमी के डेस्क पर हमेशा एक कैलेंडर होता है जिसमें अगले 4 महीने तक की छुट्टियाँ प्लान होती हैं.
लंच की उस बातचीत के बाद मीम्स में टैगा-टैगी शुरू हुई, कई जॉयंट सेशंस हुए ऑफ़िस की छत पर और फिर बात यहाँ तक पहुंची कि Narry और हमारी बकचोदी को एक और बकचोद मिल गया। Narry त्रिउंड पर साथ ही गया था — काफी बे-इज़्ज़त करने के बाद! उसके बाद से हम साथ ही घूमते थे, लिखते थे, bawraybanjaray.com चलाते थे! Ollie के आने के बाद से हमें ग्राफ़िक और विज़ुअल कंटेंट का भरमार मिल गया. अब ज़रुरत थी उसको तरीके से प्रेजेंट करने की!
करते-करते लगभग एक साल में एक मुकम्मल वेबसाइट तैयार हुई — जिसको सुबह शाम खुद ही निहारते रहते थे! उधर सोशल मीडिया पर फ़ुल ऑन बकैती चालू, फ़ॉलो आने शुरू हो गए, लोग पढ़ने लग गए, हम बकैती करते रहते थे. मज़ा भी आता था. लिखने को मिलता था, पब्लिक पढ़ती थी, एंटरटेन भी होती थी! आपकी अपनी कला से आपका पहला साक्षात्कार तब होता है जब कोई कद्रदान मिलता है. कला कद्र की ही भूखी होती है. लेकिन, इस कद्र का मायाजाल विष्णु के हाथों रचा गया है. इतना घनघोर कि अगर निकल गए तो ठीक नहीं तो ऐसे ऐसे चक्रवात लाएगा जो आपको बदल कर रख देगा.
तो 2017 की गांधी जयंती वाले वीकेंड पर Bawray Banjaray की टीम निकली स्पीति घाटी. Facebook ट्रैवल ग्रुप्स में मदद मांग कर, मनाली में 800 रूपए, पर बाइक, पर डे, रेंट करके 5 दिन में छतरू, बातल, लोसर होते हुए काजा और फिर लांग्जा, हिक्किम, कॉमिक देखकर ढंकर हो आए. वापसी में एक रात चंद्रताल और वहां से मनाली. स्पीति एक अवेयरनेस है. पूरी ट्रिप ने हमें ऐसी यात्राएं करने और डॉक्यूमेंट करने का हौंसला दिया.
जिस ब्रिटिश ट्रैवल कंपनी में Ollie के साथ हम काम किया करते थे, वहां एक नमाज़ी भाई की धार्मिक ज़रूरतों की वजह से हमें फ्राइडे वर्क फ्रॉम होम मिलता था. इस फ्राइडे का जितनी कुशलता से हम इस्तेमाल करते थे, ऑफिस में आकर अपनी शेखियां बघारने वाले लोगों को उतनी ज़्यादा कोफ़्त होने लगी. बकचोदी हुई, नौकरी फिर छोड़ दी गई.
2017 के ही दिसंबर में Bawray Banjaray का काफ़िला पहुंचा कश्मीर देखने. प्लान अब तक यही था कि ऐसी ट्रिप्स की जाएं जिनमे पैसे काम खर्च हों और जगह ज़्यादा घूम सकें. श्रीनगर से 1 जनवरी 2019 को वापसी की फ्लाइट कैंसिल होने पर, ऑफिस की भागदौड़ में टाइम शामिल होने के लिए, दिल्ली तक की प्राइवेट गाड़ी बुक करने के बाद भी हमारा खर्चा 9000 रुपये पर पर्सन से ऊपर नहीं गया. लगभग 10 दिन हम कश्मीर को काफ़ी करीब से देखकर आए. कश्मीर ट्रिप से वापस आकर फिर नौकरी की ज़रुरत पड़ी. इस बार मौका बड़ा था. सीधा Google India के साथ काम करने का चांस. मौका छोड़ा नहीं गया, माया जाल को जानते हुए भी मन मारकर खुद को फंसने दिया गया. इस समय तक Bawray Banjaray को पैसों की ज़रुरत पड़ने लगी थी.
कश्मीर और स्पीति की ऐसी बड़ी यात्राएं करने के बाद हमारे पंख निकल आए. ऐसी कई छोटी छोटी ट्रिप्स होती गईं और हर ट्रिप के साथ Bawray Banjaray सीखता गया. फिर चाहे वो बागा सराहन की बाइक ट्रिप हो, 2018 के ही मार्च में सैंज वैली के एक छोटे से गाँव में 21 ट्रैवलर्स को एक इवेंट बना कर होस्ट करना हो, भदरवाह ट्रिप हो या हर्षिल से आकर बैकपैकिंग पर एक छोटी से वेब सीरीज़ बनाना हो – ट्रिप्स जुड़तीं गईं, कारवाँ बनता गया. बागा सराहन ट्रिप पर तो Bawray Banjaray के पास अपना ऑफिशियली टेंट आ चुका था, GoPro Hero 6 भी किट में शामिल किया गया था — फोटो कंटेंट को फ़िल्मों में बदलने की कोशिश शुरू हो चुकी थी.
हर्षिल ट्रिप से ठीक पहले ही हमें मिला रूपेश! रूपेश नायर केरल से है! मल्लू! उसी समय दिल्ली वापस आया था. मुंबई में कुछ दिन काम करके. सिनेमैटोग्राफर है. रूपेश से उस समय बस Ollie की जान पहचान थी. दोनों ने दिल्ली एक साथ प्रोडक्शन हाउस चलाने की कोशिश की थी. सूत्रों की मानें तो रूपेश के पास 2011 में 20 साल की उम्र में Canon का फुल फ्रेम कैमरा हुआ करता था. और जब हमसे मिला तब भाई के पास पूरी किट है. गिम्ब्ल, वीडियो कैमरे, फुल फ्रेम कैमरे, ड्रोन, ट्राइपॉड और वीडियो प्रोसेस करने के लिए हाई एन्ड सिस्टम.
“देख भाई इंडिया में ट्रैवल सिनेमैटोग्राफ़ी बहुत कम लोग करते हैं. अपन करते हैं न कुछ! मैं इसीलिए तो आया हूँ दिल्ली ” — इतना सुनना था हमारा और अगले दिन ही वीडियो लैब सेट करने की शुरुआत हुई. रूपेश को अभी तक हमारे स्टाइल की ट्रैवलिंग का कोई आईडिया नहीं था.
“मैं ऐसा पहली बार कर रहा हूँ लाइफ में, ये फुल ऑन कैंपिंग वाला एक्सपीरियंस, ऐसे आग जला कर ओपन में खाना बनाना, ये सब” — हर्षिल में कैंप सेट करते समय कहाँ रूपेश को आईडिया था कि आगे कितने पहाड़ चढ़ने होंगे किट बैग उठाकर. 2018 का ईयर एन्ड एक्सपीडिशन हमने नॉर्थ ईस्ट इंडिया के लिए प्लान किया था. उससे पहले नवंबर में Bawray Banjaray सैंज के थीनि थाच की कमर तोड़ चढ़ाई करके गुफ़ा में रात बिताकर, हिमाचल में ही एक ट्रैवल कंपनी का इवेंट शूट करके आ चुके थे.
नॉर्थ ईस्ट एक्सपेडिशन एक दस्तक था, आने वाले तूफ़ान का. 12 दिन, 6 लोग — हॉर्नबिल वाला नागालैंड, असम, और मेघालय! जैसे स्पीति ट्रिप अवेयरनेस थी, वैसे ही नॉर्थ ईस्ट का ये एक्सपीडिशन एक एजुकेशन था. ट्रिप कैसे बनती है, क्या क्या मांगती है, इसको ज़िंदा कैसे रखना होता है, इसकी गलतियाना क्या क्या होती हैं, इसके बदलाव, इसके नफ़े -नुक्सान — अब तक इन सब चीज़ों के बारे में अवेयरनेस और ज़रूरी जानकारी से हम लैस हो चुके थे. पैटर्न, हालाँकि, काफी सिमिलर थे, मसलन इस बार भी किसी वजह से गुवाहाटी से वापसी की फ्लाइट छूट जाना हमारी टॉप टेन भसूड़ियों में शामिल है.
पूरे एक साल में कलेक्ट किए गए कंटेंट को अब एक मुक्कम्मल शक्ल चाहिए थी. नॉर्थ ईस्ट एक्पेंडिशन का ट्रेलर रिलीज़ किया गया, हर्षिल के एपिसोड्स ख़त्म किये गए और बीच-बीच में एक दो छोटी ट्रिप्स होती रहीं. फिर आया 2019 का मार्च!
9 से 6 की ऑफ़िस वाली लाइफ़ से वापस आकर अपने बंद कमरे में कंप्यूटर पर जब आप ऐसी तस्वीर को ठहर कर देखते हैं तो आपके साथ क्या होता है? ऐसे ही किसी दिन आप कमरे में कंप्यूटर की स्क्रीन पर इस फोटो को देखते हो. आप पलटकर कहते हो – “ओए, लद्दाख चल रहा है क्या?”
इस एक सेंटेंस में कितनी ऊर्जा, कितने सपने हैं, कितनी होप्स हैं, इसका अंदाज़ा उस वक़्त निलकुल भी नहीं था जब ये शब्द कमरे में रखी कुर्सी पर से उवाचे गए. कहाँ पता था कि दुनिया के 15 सबसे पागल लोग, जो और भी ज़्यादा पागल हो सकते हैं, एक साथ 15 दिन लद्दाख जैसे सफ़र पर निकलेंगे। कहाँ पता था कि 15 लोग जाएंगे! ये भी नहीं पता था कि जाएंगे कैसे? किसको अंदाजा था कि हम एक ऐसे ट्रिप की प्लानिंग करने जा रहे हो जो हमें अंदर से हिला देने वाला है। जो आपके सारे दम्भ, सारा अहम, सारी बेसब्री को खा जाएगा। कहाँ ऐसी ट्रिप्स बनती हैं जो आपके हर एक गुण और दोष को एक जगह लाकर बिठा देती हैं और कहती हैं – बेटा, अब चुन लो किसके साथ आगे जाना है।
तो हुआ ये कि हमने सोचा जब लद्दाख़ जाना ही है तो थोड़ा अलग तरीके से चलते हैं। अपने खड़े बाल का यही हिसाब किताब बन गया है — कुछ तो अलग करना है। सो प्लान ये बना कि कुछ परफॉर्मिंग आर्टिस्ट को इनवाइट करते हैं। थोड़ा कांसेप्ट ट्रेवल करते हैं। एक ट्रेवलिंग कार्निवाल बनाते हैं। म्यूजिशियन, पेंटर, योगा वाले, स्केच आर्टिस्ट – जो भी चलने को राजी होता है, पहले उससे बात कर के देखते हैं। Bawray Banjaray अब अपनी पहचान बनाने और ढूंढने के लिए पूरी तरह से तैयार होने की कोशिश कर रहा था.
आगे, अगले हफ्ते!