डीयर जोएना,
हैप्पी बर्थडे!
हम जानते हैं कि तुम यह चिट्ठी पढ़ोगी। तुम्हें हिंदी का अ ब स भी नहीं पता है, तब भी तुम पढ़ोगी। तुम्हारे-हमारे समय में टेक्नोलॉजी जो है! हमारी तुम्हारी भाषा के बीच का अंतर ही खत्म कर दिया। पर समय और स्पेस का अंतर नहीं पाटा जा पाया है। अभी तो मुश्किल ही लगता है यह सोच पाना। तुम्हारे सनराइज़ का टाइम जो अलग है!
खैर, और बताओ? पॉलैंड में सब कैसा चल रहा है? इससे पहले कि तुम हमसे पूछो, बता देते हैं कि इंडिया में सब ठीक ठाक है। वैसे लोग अब भी मंदिर मस्जिद में फंसे हैं, हाँ कश्मीर को बदल दिया गया है। नक़्शे और कानून, दोनों में। कश्मीर के लोगों की हालत 2017 से ज़्यादा अलग नहीं है। हाँ, वही कश्मीर जहाँ हम और तुम जा नहीं पाए थे, तुम्हारे और Magda की वीजा इश्यूज की वजह से।
तुम्हारी मम्मी कैसी हैं? हमारी मम्मी वैसी ही हैं जैसी तुम छोड़ के गईं। गाहे-बगाहे तुम्हारा हाल चाल पूछ लेती हैं। हम फेसबुक पर दिखा देते हैं तुम्हारी फोटुएं। किसी दिन वीडियो कॉल का इंतजाम करो। टाइम मैच करके। दोनो मम्मियों की हरकतें याद हैं? कैसे फ़ोन पर एक दूसरे को फ्लाइंग किस और राम राम भेज रहीं थीं? एक बार फिर से यही करतब देखने का मन करता है। आस पास बहुत नेगेटिविटी है। आजकल फिर बच्चे सड़कों पर पीटे जा रहे हैं। क्योंकि ये बच्चे अपने कॉलेज की फ़ीस नहीं दे पा रहे हैं, पढ़ने के लिए! तुम्हारे देस में भी ऐसा होता है क्या? बताना।
परसों तुम्हारा बनाया भेड़िया बड़े दिनों बाद देखा – बिल्कुल वैसे ही खड़ा है, एकदम शान से, तन के। अपने दोस्तों को आवाज़ देता हुआ। देख के लगता है उसका जंगल ही अच्छा है। हमारे शहरों के जंगल से। अंधेरा है, लेकिन साफ है – सांस लेने लायक। जो दिल्ली तुम छोड़ के गई थी, उसकी हवा और खराब हो गई। हमारा शहर मार रहा है। तुम्हारा शहर कैसा है? लिखना।
आज फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की बरसी है। वही जिनकी कविताएं हमने छत पर बैठ कर तुम्हें समझाईं थी। “कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया” वाली याद है? हमारी भी कोशिश जारी है। पर आजकल काम इश्क़ के आड़े आ जा रहा है। तब भी कोशिश कर रहे हैं। महीने दो महीने में कहीं न कहीं घूम आते हैं। कुछ लिख लेते हैं। भले ही गांव ही क्यों न चले जाएं। हाँ, गांव में शादी है। भोलू की। काका और मौसी ठीक हैं। फिर से बाजरे की रोटी का मौसम आ गया है। सरसों के खेत फिर से पीले होने वाले हैं – तुम्हें दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे वाली कहानी याद है? हमने तुम्हें एक लिस्ट दिया था – फिल्मों की। देख लीं?
तुम्हारा डब्बा अभी भी यहीं पड़ा है। एक दो बार भारतीय पोस्ट पहुंचा नहीं पाई और फिर हमने छोड़ ही दिया। सिस्टम की मामूली चूक ने हमें बिगाड़ दिया। हमने मान भी लिया। दुबारा कोशिश भी नहीं की। क्या करें। सिस्टम ही ऐसा बनता चला गया है। आप न चाहते हुए भी इसका शिकार हो जाते हो। अब डब्बा भेजने का मन ही नहीं करता। ऐसा लगता है हमने उसकी वैल्यू खत्म कर दी। हम भारतीय जाने अनजाने में ऐसे ही होते चले आए हैं – पहले सिस्टम को बिगाड़ने देते हैं फिर बैठकर सर पीटते हैं। कोई बोलता है तो उसे दबाते हैं।
बाकी सब ठीक है। हाँ, हम सब पर शादी का प्रेशर अब और बढ़ गया है। तुम्हारी मिसाल अब काम नहीं आती। लोग कितने भुलक्कड़ होते हैं ना? तुम्हारे जाने के बाद तो घर में चर्चे चले हैं, गेस्टों के साथ, पड़ोसियों के साथ, गांव वालों के साथ, दूर के रिश्तेदारों के साथ। ब्रेकफास्ट पे, लंच में, रात के खाने पर – मिसालें दी गईं। कि ज़िंदगी हो तो इन लड़कियों जैसी हों। हमें भी राहत मिली थी – एक तो ये कि कुछ दिन तक शादी का बवाल छंटेगा और दूसरा ये कि मम्मी के लिए और आस पास की कई लड़कियों और महिलाओं के लिए तुमने बहुत चीजों के मायने बदल दिए। लड़के भी सुधर गए। सब खचड़े तुम्हें याद करते हैं। तुम्हारे पास सब का हैप्पी बर्थडे विश तो आ ही गया होगा। हम ही पीछे रह गए।
हम सीख रहे हैं जोएना। हम गलतियाँ बहुत कर रहे हैं। फेल भी बहुत हो रहे हैं। लेकिन मज़ा ये आ रहा है कि बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। रोज़ गिर रहे हैं, रोज़ उठ रहे हैं। पर इश्क़ है, तो सब जायज़ है। तुम लिखना। तुम्हारा इश्क़ कैसा है! तुम्हारा पॉलैंड कैसा है!
चलो छोड़ो। अब एकतरफा लिखते रहे तो जॉइंट खत्म हो जाएगा।
अब तुम लिखना। हम वेट करेंगे।
Bawray Banjaray
20.11.2019,
दिल्ली
भारत