संजोग और समय के इस अलौकिक चक्र में हम बावरे बंजारे इसी संभाव के साक्षी थे! बर्फ़ की सफ़ेदी, वंडरलस्ट के दिखावे और हनीमून की गर्माहट से दूर, इस चिलमयी दुनिया में, हमारे और हिमालय के इस हिस्से के बीच, शोर, शान्ति और समन्वय का जो संभाव बना न — बस उसी का नाम मनाली है !
Bawray Banjaray Exclusive
सारे परफॉर्मेंसेज़ देख कर हमको आख़िरकार वो चीज़ समझ आती है जिसके लिए नागा लोगों का यह परफॉर्मेंस होता है. परफॉर्मेंसेज़ का टॉपिक इतना सीरियस होते हुए भी सब मजाकिया तौर पर हो रहा होता है. नकली गन, नकली गोली और मारना मरना सब नकली। हालाँकि इसी परफॉर्मेंस के थ्रू ये लोग युद्ध के मैदान में होने वाले नुकसान को दिखाते हैं. यही इस परफॉर्मेंस का मकसद होता है. असल वॉर की एक पैरोडी करके ये लोग ह्यूमंस की लड़ाई वाली मानसिकता पर गहरी चोट करते हैं. बेशक इन लोगों में इस बात की समझ पर्सनल एक्सपीरियंस के बाद आयी हो, पर दर्शकों को अपनी पर्फोमन्स से इस बात पर सोचने को मजबूर करते हैं.
हमलोग कोहिमा शहर एक्स्प्लोर करते हुए हार्नबिल फेस्टिवल की तरफ बढ़ रहे थे. कलाम, लिंकन, इंस्टीन और एमिनेम — अगर कोई शहर आपको इन सब को एक ही फ़्रेम में दिखाता है, तो आपको एक बार ऐसे शहर को क़रीब से ज़रूर जानना चाहिए. हमारे पास कोहिमा में बिताने का ज्यादा समय तो नहीं था, पर दुबारा यहां आने के लिए शहर की इतनी झलक काफ़ी थी. कोहिमा से किसामा जाकर अब बारी थी नागालैंड के सबसे फ़ेमस ‘हॉर्नबिल फेस्टिवल’ अटेंड करने की. यही मौका था यहां के लोगों को और अच्छे से जानने का. जब तक हम आपसे नार्थईस्ट यात्रा की आगे की कहानी बताएं, तब तक आप आप माजुली में हमारे पहले दो दिनों की कहानी ज़रूर पढ़ लीजिए।
आज भी हर साल की तरह अप्रैल की बीसवीं तारीख है और दुनिया भर की चरसी-गंजेरी-भंगेड़ी जमात अपने अपने सोशल मीडिया पर इसकी ईद मनाते दिख रहे हैं. अब क्योंकि हमने भी दुनिया में कहीं भी, कभी भी प्रकृति की इस देन को संस्कृति का कानूनी हिस्सा बनाने की क्रांति करने में लगे बन्दे की सरकार बनाने में अपना दो कौड़ी का योगदान करने की पब्लिक घोषणा कर दी है, तो ये आइडिया आया कि एक बार चार इस चार सौ बीसी के बारे में भी बातचीत करते चलें!
On our trip to the Bodoland as Ambassadors Of Bodoland during Dwijing Fest of 2019-20, we got to spend a day amidst the Tiwa hospitality and culture. Here is a collection of photos that we could bring by.
‘पीरियड्स’, ‘माहवारी’, ‘महीने के वो दिन’, ‘अशुद्ध होना’, ‘डाउन होना’ जैसे शब्दों की आड़ लेकर स्कूलों में अपने स्कर्ट्स पर चॉक की सफ़ेदी, गाँवों में राख के टेक्सचर और छोटे शहरों में पुराने कतरनों के नीचे एक पूरी पीढ़ी ने पूरे ताम झाम से एक सिंपल बायोलॉजिकल प्रोसेस के नाम पर सबका चूतिया (माफ़ करना, गुस्से में इधर उधर हो जाता है!) काटा है! और, आज भी यही एक्सपेक्ट किया जा रहा है कि वैसे ही ये वाली पीढ़ी भी कटवाती रहे — अब ये तो होने से रहा! ट्रैवल ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों से ही ट्रिप्स और ट्रेक्स पर पीरियड्स को लेकर होने वाली परेशानियां, दिक्कतें और हिडेन कॉम्पलेक्सेज़ के बारे में लिखने और बात करने की चुल रही है – लॉकडाउन में ये भी निपटा ले रहे हैं!
आपको बेवकूफ़ बनाया जा रहा है – आपके समय, आपके अटेंशन को कितना हल्के में लिया जा रहा है ये भी सोचिए। और ये भी सोचिए कि अगर ऐसा ही रहा तो आपके सामने से आपकी कहानियां ग़ायब हो जाएंगी और एक विकृत, डिस्टॉर्टेड मानसिकता जो आज हमारी सच्चाई बन गई है, उसकी आग इन कहानियों में आपके हीरो बनने के अधिकार को लील जाएगी।
याद रखने वाली बात ये है कि इस डेडलाइन के अलावा अभी कोई और इनफार्मेशन नहीं है। 31 जनवरी 2020 के बाद आप अपने ड्रोन्स रजिस्टर कर सकते हैं या नहीं, इसकी जानकारी हमें अभी नहीं मिली। तो बस, यही सब बात है। आज हम भी अपने उड़नखटोले रजिस्टर कर लेंगे। आप भी देख लो, आपको कब करना है।
इंटर कल्चरल कम्पेरिज़न्स में इस तरह की मिलती जुलती बातें सामने आना कोई नई बात नहीं है। एक जिज्ञासु होने के नाते वैसे भी हम सबके मन मे ऐसे बहुत से सवाल उठते रहते हैं। यह भी अभी एक नया विचार है, एक ऐसा विचार, जिससे रैडिकल सोच वाले लोगों को असहमति भी हो सकती है। लेकिन, यह हिमालय और अन्य संस्कृतियों के डिफरेंट आस्पेक्ट्स की स्टडीज़ को एक अलग डायरेक्शन दे सकता है। नड़ और गूर कम्युनिटी के बारे मे ऐसी कई बातें हैं जिनपर अगर गौर किया जाए, तो हमें अपनी हिस्ट्री और कल्चर से जुड़े बहुत से सवालों के जवाब मिल सकते हैं। बस हमें यह ध्यान रखना होगा कि हिमालय की इन ट्रेडिशंस को रेस्पेक्टफुली प्रिज़र्व किया जाए।
अब आप इस गाँव में रात में नहीं रुक सकते – ऑफिशियली! गाँव के शाशन तंत्र ने ऐलान किया है, अपने प्यारे जमलू ऋषि के नाम पर! वैसे ये अच्छा ही है – कुछ तो बकैती कम हुई. धंधा वैसे बराबर ही चल रहा होगा! ऐसी सेंसिटिव जियोग्राफी में इतने सारे लोगों को इतना ज़्यादा टाइम स्पेंड करना कहीं से भी सही नहीं था. टूरिज़्म इंड्यूस्ड कूड़ा भी बढ़ ही रहा था. खैर, आप ही डिसाइड करिए कि ये मिथ है या पॉपुलिज़्म या बकैती!
बहुत से लोग, संस्थाएं और सरकार इसे बचाने की कोशिश में लगे हैं। पर, माजुली को बचाने के लिए अभी तक जितने भी प्रयास किये गए हैं, कुछ ज्यादा सफल नहीं रहे। जरुरत है कि ज्यादा से ज्यादा लोग माजुली पहुँचे और लिखकर, मूवी बनाकर या किसी भी तरीके से माजुली पर मंडराते खतरे के बारे में लोगों को बताएं। सरकार और संस्थाओं के साथ-साथ लोगों का साथ ज्यादा जरुरी है, नहीं तो माजुली नक़्शे से ही गायब हो जाएगा।
जो सियाचिन देखने के सपने देखते थे, उनसे लेकर जो बस सियाचिन को देश प्रेम झाड़ने का ज़रिया मानते हैं, उन तक — कल शाम से सियाचिन जाने के कितने सपने सजते चले गए. साथ ही, हर मुद्दे और पहल पर डिबेट करने का राष्ट्रीय रोज़गार भी शुरू हो गया – कितना सही है, कितना गलत है से लेकर ग्लोबल वार्मिंग के असर तक – इतना ज्ञान पेला जा रहा है कि हमने सोचा कि चलो थोड़ा पढ़ा जाए और जाना जाए कि आखिर सीन है क्या सियाचिन का. तो सबसे पहले ये पता किया गया कि सियाचिन है क्या, कहाँ है, क्यों है और फिर ये सारा बवाल समझ आया. तो जो हमारी समझ में आया, वही आपसे शेयर कर रहे हैं।
We got a chance to talk to Mohith about his walk from Manali to Khardung La and tried to know what is it actually that drives young Indians like him to take up traveling as a means of self-exploration. Read on the full conversation:
Backpacking is considered one of the most efficient and sustainable forms of travel. It rarely does contribute to mass tourism and brings in money to the interiors of a place. Backpacking implies an interesting milieu of intercultural exchanges and learnings. As one of the most ‘aware’ group of travelers and tourists, Backpackers help in reducing carbon footprints – thanks to their ‘jugaads’ and other ways of travel. In the final episode of our web series THAT HARSHIL WEEKEND, we explore and bring to you the charms of Bagori Village. Bagori nests in it, the migrants forced out by the Indo […]
Backpacking is considered one of the most efficient and sustainable forms of travel. It rarely does contribute to mass tourism and brings in money to the interiors of a place. Backpacking implies an interesting milieu of intercultural exchanges and learnings. As one of the most ‘aware’ group of travelers and tourists, Backpackers help in reducing carbon footprints – thanks to their ‘jugaads’ and other ways of travel. On our weekend backpacking trip to Harshil Valley in Garhwal Himalayas, we are trying to decode backpacking as a means of travel. Writer: Pushkar Ranjan, Narendra Rathi Narration: Pushkar Ranjan Photographer: Oliur Rahman […]
बर्फ़ गई और समय आ गया है पिछले साथ-आठ महीनों से बंद पड़े रस्ते, रोड्स, ट्रेल्स और ट्रेक्स के खुलने का. चटक धूप खिली है और सफ़ेद पाउडर का सूरज और चाँद के साथ नैन-मटक्का भी शुरू हो गया है. बर्फ़ भी उम्मीद से ज़्यादा मिली है, सो उसका भी इन रास्तों और ट्रेक्स पर अपना ही असर है. इधर परीक्षाएं भी ख़त्म होने वाली है, फिर आएंगी गर्मी की छुट्टियां और उत्तर भारत में शादियों के मौसम – आजकल लोगों का हनीमून ‘ट्रेक’ भी हो गया है! कुल मिलाकर देखा जाए तो उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में […]
This Ladies and Gentlemen is one of those experiences where you get to have a face-off with that dream. It happened to us on a trip to Shangarh in Sainj Valley of Himachal Pradesh where we discovered ‘Singh Sahab’s Home’ – something of sorts that we dream and fancy about.
Tough roads lead to beautiful destinations. And, when the routes are of the greater Himalayas, it will be fool’s idea to speak on their behalf. The Himalayan routes speak for themselves and their tales are enchanting, fulfilling and prospering. Dedicated to all riders & drivers, here are some of our chosen routes widespread all over the Great Himalayan Ranges. Guwahati – Tezpur – Dirang – Tawang North-East India is home to some of the best road trip routes and remains one of the last few un-commercialized travel destinations in India. From Shillong to Tawang, the route has many sharp hairpin […]