नुब्रा वैली में हिंदुस्तान को सिल्क रूट से जोड़ने वाले रस्ते में कराकोरम रेंज से घिरा तुरतुक, लद्दाख के उत्तर में खारदुंग ला के परे, श्योक नदी किनारे बसा एक छोटा सा गाँव है. तुरतुक यहाँ मिलने वाले मीठे खुबानी (Apricot) और खुशमिज़ाज बाशिंदों की वजह से आजकल काफी फ़ेमस हो गया है. रोड से जुड़े हुए उत्तरी लद्दाख के इस आखिरी गाँव से ही सियाचिन ग्लेशियर का रास्ता निकलता है. सुदूर उत्तर में बसा यह गाँव भारत के कुछ उन गाँवों में से है जो वक़्त में कहीं पीछे छूट गए हैं — शायद मुल्क़ बदलते-बदलते यहाँ के लोग अपने आप को वक़्त के साथ बदल नहीं पाए. और इसी का नतीजा है कि हिंदुस्तान के आखिर छोर पर बसा यह गाँव 1971 से 2010 तक तो बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा रहा.
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इस जून में जब Le Ladakh चल रहा था तो लेह से निकल कर हम सीधा पहुँच गए थे तुरतुक. सीधा मतलब बिना कोई रात कहीं और बिताए. तुरतुक में अपना एक घर है, वैसे तो असद भाई का घर है पर अब उसका छोटा सा हिस्सा उन्होंने हमें चिल्ल करने को दिया है और हमने उसे अपना बना लिया. तो खारदुंग ला की बर्फ़ से बच के निकल कर दिस्कित वाले बुद्धा जी को दूर से सलाम मारते हुए हम पहुँच गए थे सीधा तुरतुक. तुरतुक वैसे तो एक छोटा सा गाँव है, पर है कतई खूबसूरत.
1947 में बटवारे के बाद जब पाकिस्तान ने कश्मीर हथियाने के लिए भारत पर हमला किया तब युद्ध विराम की घोषणा होते-होते, कश्मीर और लद्दाख का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्ज़े में आ गया था. उसमें से एक गाँव तुरतुक भी था. पर सन 71 की लड़ाई के बाद तुरतुक फिर से हिंदुस्तान में शामिल हो गया. हालाँकि, सैलानियों को यहाँ की खूबसूरती से वाक़िफ़ होने के मौके के लिए सन 2010 तक का इंतज़ार करना पड़ा.
वैसे हमारा तुरतुक से तआ’रुफ़ पहली दफ़ा 2015 में हुआ था — जब ट्रकों में भटकते हुए, फौजियों के साथ सफ़र करते हुए हम किसी तरह अनजाने ही तुरतुक पहुँच गए, ऐसा इसलिए क्योंकि फौजियों से हमने कह दिया कि जहाँ तक आप ले जा सकते हैं वहां तक चलेंगे हम. उस वक़्त तुरतुक तक कम ही लोग आते थे, ज्यादातर लोग हुन्डर गाँव में दो कुब्बड़ वाले ऊँटों की सवारी कर के और रेतीले टीलों पे लोट के वापिस लेह निकल लेते थे.
जानिए तुरतुक गाँव को हमारे Turtuk Photo Blog के ज़रिए
सुदूर उत्तर में ऊँचे ऊँचे पड़ाहों में बसे होने का यह मतलब नहीं कि यहाँ कोई कहानियां नहीं है, तुरतुक किस्से कहानियों के खदान हैं. हों भी क्यों न? न मुक्कमल जंगों और प्रॉक्सी वॉर के नतीजे क़िस्से कहानियों में ही तो देखने को मिलते हैं — बिलकुल असली वाले! और उन कहानियों में से एक ख़ास कहानी ने हमारे दिल में घर सा कर दिया है — आइशा की! यह कहानी बहुत ही जल्द हम आपसे शेयर करने वाले है. फ़िलहाल फ़ोकस करते है गाँव में अपने घर की कहानी पर कि कैसे इस अनजानी जगह पर हम बंजारों को एक घर मिल गया.
घूमते घूमते हम पहुँच गए एक बार फिर तुरतुक, 2015 के तीन साल बाद! तुरतुक में जहाँ आ कर गाड़ियां रूकती हैं उसके बिलकुल लेफ्ट में एक ब्रिज है जो नाले को पार कर तुरतुक गाँव में ले आपको ले जाएगा। घुसते ही सबसे पहले जो नज़र आता है वो है फ्रेंड्स कैफ़े। इस बार अपन यहीं बैठ लिए थे और फिर दौर चला बातों का। बात चली कि गाँव में ठहरने के लिए सबसे अच्छी जगह कौन सी है?
इस सवाल के जवाब में हमें बस एक इशारा भर मिला, फ्रेंड्स कैफ़े के बाजू में ही एक पुराना बाल्टि कला में बने एक घर की ओर, और फिर मिले हमें असद भाईजान। वैसे तो असद भाईजान तुरतुक के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कपाउंडर है, सुइयां वुइयाँ लगाते है पर जेहनी तौर पे बेहद ही हंसमुख और सरल है।
अब आप बोलोगे के हम फेंकने में मोदीजी को कम्पटीशन दे रहे है पर हम सबूत दे सकते है। हमने तो बस ज़िक्र किया था कि घूमते घूमते बहुत दिन हो गए और घर के बने हुए मटन की बहुत याद आ रही है. हम कुछ समझ या कह पाते इससे पहले असद भाईजान के घर से बुलावा आया के मटन तैयार है. अब भूखे को क्या चाहिए खाना और उस पर कोई आपको मटन बना के खिलाये.
हमें लूटने के लिए इतना ही काफी था पर फिर अगली सुबह जो भटूरों (वैसे वो मैदानों वाले भटूरे नहीं थे, तंदूर में पकाये हुए ब्रेड से थे, के साथ नमक और बटर वाली चाय के साथ हमारी जो खातिरदारी की गयी वो हम जैसे बंजारों के लिए बहुत, बहुत ही ज़ियादा हो चला था. बात बात में बात चली की असद भाई होमस्टे बनाने की सोच रहे हैं. अब हमें और क्या चाहिए – मिल गया तुरतुक में Bawray Banjaray होम!
फिर इतना सब खाने के बाद पचना भी तो होता है न , तो असद भाई निकल लिए हमको साथ ले के फिर पूरे दिन सारे गाँव की तफरी की गयी और गाँव के ऊपर की और जो झरना है वहीँ पे जा के आराम किया और वापसी में तुरतुक वाले बौद्धी गोम्पा भी हो आये। फिर ड्राइड एप्रीकॉट के जो मज़े उड़ाए गए है उसकी गवाही या तो वो रात या फिर किसी रोज़ हमारे दांत या पेट ही बता सकते हैं।
2018 में तो तरतुक में कुछ रोज़ बिताने का मौका मिला था पर इस साल Le Ladakh के वक़्त ज्यादा वक़्त नहीं मिला, बस एक रात ही रुक पाए, एक शाम और एक सुबह के साथ। आप तुरतुक आना चाहते हैं तो एक बार Bawray Banjaray गाइड टू तुरतुक विलेज पर एक नज़र ज़रूए मार लें.
तब तक , नेटफ्लिक्स एंड चिल्ल!
और हाँ, अगर आप असद भाईजान के यहाँ रुकना चाहते हैं, तो बुकिंग यहाँ से कर सकते हैं – Bawray Banjaray होम, तुरतुक