क्या क्या आपको पता है, ट्रिप शुरू होने से पहले ही ट्रिप शुरू हो जाती है, और कोई भी ट्रिप, ख़त्म होने के बाद भी चलती रहती है। ट्रिप से पहले ट्रिप का मतलब ‘प्लानिंग वाला टाइम’ है! ये नशे सा होता है और ट्रिप के बाद वाले ट्रिप का मतलब है ‘ट्रिप का सुरुर’– ये सब ख़त्म होने के बाद भी बना रहता है। हम अभी तक प्लानिंग वाले नशे में थे। सब प्लान कर लिया था। सारी तैयारी की जा चुकी थी। बैठकर बस उलटी गिनती गिन रहे थे कि बस कब निकलें, अब निकलें।
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देखिए, ले दे के बात फिर वहीं आ जाती है कि आप कितना प्लान कर सकते हैं? आपका प्लान कब तक सिर्फ़ आपका रह सकता है? कि क्या किसी और का प्लान आपकी प्लानिंग की लेनी देनी कर सकता है? प्लान की हुई चीज़ें असल ट्रिप के हिसाब से बदल सकती हैं या बदल जाती हैं, ये तो हमें पता था। पर ट्रिप से पहले ही ट्रिप का पूरा प्लान ही बदलना पड़ सकता है, वो भी किसी और की वजह से, इसकी हमको कोई भनक नहीं थी। ट्रिप शुरू होने से तीन या चार दिन पहले कुछ ऐसा हुआ कि सब सेकंड में बदल गया। हमको तो तब भी कम फ़रक पड़ा, बहुतों की तो लाइफ़ हाई बदल गई।
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दुनिया में दुनियाभर के लोग हैं। जिनमे से कई लोग ऐसे भी हैं जो अत्यंत विचित्र कामों को बिना सोचे समझे करने की क्षमता रखते हैं। बस एक ख़बर आई, और ज़्यादा कुछ नहीं था। एक ‘ नया सर्प्राइज़’ था। मोदी काका ने फिर अपना गुणगान किया और हमारी ग्रेट लेक्स ओफ़ कश्मीर ट्रिप धरी की धरी रह गई। कुछ सेकंड के अंदर ही ग्रेट लेक्स जाने की हमारी प्लानिंग, इसका इक्सायट्मेंट, ट्रिप, और साथ में हमारी — सबकी ले ली गई। अब इसमें हम कुछ कर भी तो नहीं सकते, बड़ा चक्र है, और हम इसकी तिल्लियाँ। हमारी ट्रिप की तो बस डेस्टिनेशन बदली, यहां तो लोगों की ज़िंदगी बदल गई। ख़ैर, पूरा देश ही भी तो ‘सर्प्राइज़-सर्प्राइज़’ खेल रहा है। फिर से दिमाग़ में ‘ पहाड़-पहाड़, जाना है, जाना है, हो गया। पर अब फिर जाए कहां, मालूम नहीं था।
मायूस बैठे हम क्या करते। एक सर्प्राइज़ तो मिल चुका था, हमने सोचा, एक हम ख़ुद को देते हैं। आख़िर ट्रिप पर तो जाना ही था। पहले हमने कश्मीर के हालात जानने की कोशिश की। सबसे एक ही सलाह मिली- ‘इस समय तो कश्मीर मत ही जाओ, ख़ासकर 15 अगस्त के टाइम।’ हम भी नहीं चाहते थे कि ये ट्रिप कहीं जीवन की आख़िरी न हो जाए। अभी और घूमना है भई, क्या भरोसा आगे और क्या सर्प्राइज़ मिलता।
15 अगस्त वाला हफ़्ता शुरू होने में बस कुछ एक दिन बचे थे। हमें फिर से डेस्टिनेशन डिसाइड करनी थी, मतलब वही काम दोबारा। मोदी काका ने ग्राउंड ज़ीरो से साक्षात्कार कराया था।
उस समय हमारी बात हर्ष भाई से हो रही थी। मनाली के पास जगतसुख में उनका होमस्टे है, जहां वो ख़ुद होस्ट हैं। हर्ष भाई से उनके Lagom Stay पर मिलने की बात काफ़ी बार हो चुकी थी। पर समय के रहते हम जा नहीं पाए थे। हमने सोचा, यही बारी है, इसी बहाने, इस बार मनाली चलते हैं। कश्मीर तो कैन्सल हो गया। हमने पहले जम्मू के लिए ट्रेन की टिकट कैन्सल करी और बस टू मनाली में 5 सीट बुक कर दी। ट्रिप के लिए निकलने का टाइम वही था, बस डेस्टिनेशन बदल गई!
हम लोग दिल में कश्मीर का मलाल लिए मनाली के लिए निकल लिए। जो ट्रिप हमने पहले सोची थी, ये उससे बिलकुल अलग हो रही थी। पहली बार, दिल्ली से, हमारी बस छूटते-छूटते बची। फ़ोन पर रिक्वेस्ट कर कराके, बस वाले को रूकवाकर, किसी तरह हमने बस पकड़ी। शुक्रवार रात को दिल्ली से निकले, अगले दिन दोपहर तक मनाली। कश्मीर न सही, मनाली ही सही, पर पहाड़ तो आए।
मन की तसल्ली के बाद अब पेट की बारी थी। ढाबे पर से हमने बढ़िया दही-पराँठे पेले और चाय पीते-पीते हर्ष को फ़ोन किया कि बस पहुँच रहे हैं।
मनाली से जगतसुख ज़्यादा दूर नहीं है। हद मार के बीस से पच्चीस मिनट लगते हैं, बस से। हर 15 मिनट में मनाली से नग्गर के लिए बस निकलती है, जो आपको सीधा Lagom Stay पर उतारती है। हमारे पास काफ़ी सामान था, इस करके हमने कैब की। पर कैब करने से पहले हमने ट्रिप की पहली शाम का इंतजाम किया। अरे नहीं भई, कोई दारू-नशा नहीं। हमने शाम मे खाना-पार्टी करने के लिए एक बड़ी रूपचंद मछली, किलो भर मटन और साग-सब्ज़ियाँ उठाई। शाम तक हम Lagom Stay पर थे।
तो इस तरह हमारी 15 अगस्त वाली ट्रिप कश्मीर न होकर मनाली हो गई। ट्रिप की प्लानिंग स्टेज में ही हमारी शुरुआत सर्प्राइज़ के साथ हुई। अभी तो पहाड़ पहुंचे ही थे। हफ़्ते भर की यात्रा तो अभी होनी थी, और एक हफ़्ते की ट्रिप में कितने ‘सर्प्राइज़’ हो सकते हैं — हम फिर कह रहे हैं, आपको, हमको, किसी को नहीं पता। हफ़्ते का ट्रैवल आपको बहुत कुछ दिखा सकता है।
आगे और कितने सर्प्राइज़ मिले, वो आगे की पोस्ट में बताएँगे। पढ़ते रहिए..