पर आख़िर पहाड़ हैं क्या, सुकून हैं कि कोई जुनून?
अब हम पहुंच तो गए मनाली जैसी बेहतरीन जगह में, पर फिर भी कहीं न कहीं दिल में हल्का सा मलाल रह गया कश्मीर न जा पाने का। मलाल असल बात में तो Kashmir Great Lakes Trek न कर पाने का था। ट्रेकिंग का मन और मौसम तो अब भी बने हुए थे, पर पहाड़ों तक पहुंचते-पहुंचते हमारे इरादे बदलने लगे। ट्रेकिंग का प्लान बन कर बिगड़ गया। मनाली में, हम पहले Lagom Stay वाले अपने अड्डे पर पहुँचे, जो Prini से 10 मिनट की दूरी पर Jagatsukh, Manali में है. ये Prini वही है, जहाँ से Hampta Pass Trek निकलता है। लालच तो आ ही जाता है, पर फिर हमने सोचा कि पहले सेट्ल होते हैं, आगे की आगे देखी जाएगी फिर।
अब पहले तो आपको Lagom Stay के बारे में बताते हैं। उससे पहले हर्ष भाई के बारे में, जो यहां के मुख्य होस्ट हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करके, दिल्ली में नौकरी करते-करते, इन भाई साहब के मन में आया कि अपना कुछ करते हैं। यही सोचकर इन्होंने नौकरी त्याग दी और कूद पड़े, पूरे मन से हॉस्पिटैलिटी लाइन में। लोगों को अपने होमस्टे पर एकदम शाही अंदाज़ से रखते हैं। बातें करने में माहिर, एक बेहतरीन होस्ट। इनके भी अपने क़िस्से हैं, कुत्तों को लेकर।
ट्रैवल और हॉस्पिटैलिटी लाइन का यही है, आप चाहें गेस्ट हों या होस्ट, आपका पाला नए लोगों से लगातार पड़ता रहेगा। घूमने के पीछे का एक चस्का यह भी है। तो हम गेस्ट और हर्ष भाई होस्ट — बावरे बंजारे ऐट लगोम स्टे। मनाली में रहकर भी मनाली की भसड से दूर, एकदम मस्त ठिकाना। इंटरनेट से लेकर मॉडर्न किचन तक की सारी सुविधाएँ हैं यहां। यहां बैठकर आप मनाली के नज़ारों का लुत्फ़ उठाते हुए, मस्त चिल्ल कर सकते हैं। हमको तो जितनी आदत है ख़ातिरदारी की, हर्ष भाई उससे कहीं ज्यादा कर रहे थे। अगर आप अपने घर वालों के साथ घूमने का प्लान कर रहे हैं तो, मनाली के आसपास रुकने की इससे बढ़िया जगह नहीं है।
Lagom Stay – मनाली की भसड़ से दूर, बिलकुल घर जैसा होमस्टे
सबसे पहले हमने मनाली से लाई हुई मछली और मटन को सेट किया, मैरिनेट होने के लिए रख दिया। शाम को दावत जो होनी थी। फिर फ़्रेश होकर हम थोडा इधर-उधर निकल लिए, गांव का मुआयना किया, कुछ तस्वीरें ली। वापस आते हुए बाज़ार से साग-सब्ज़ी और एक छोटा-लिटल मोंक उठा लाए। बाहर गार्डन में टेंट लगाकर, वहीं बैठकर चूल्हे पर पकाने का इरादा था। पर हाथ क्या लगा शाम होने तक — बादल। काले बादलों ने हमारे बाहर कुकिंग के प्लान पर पानी फेर दिया।
सारा प्लान अंदर शिफ़्ट हो गया। हम बाल्कनी में जाकर सेट्ल हो गए। बातें, बकचोदी, गप्पें, गॉसिप और लिटल- मोंक के साथ शाम बाल्कनी में शुरू हुई। बाहर बारिश हो रही थी, बुंदों की टपटप के साथ साथ साथ बाते भी चले जा रही थी। कितनी बातें थी उस शाम..!
यहाँ हमारी मुलाक़ात एक इन्स्पाइरिंग और इन्सेन ट्रैव्लर से हुई। भाईसाब! जितनी डेस्टिनेशन इन्होंने घूमीं हैं दुनिया भर में, उतनी तो अभी हमने इमैजिन भी नहीं की हैं। कमाल की फ़ूड ब्लॉगर और ट्रैवल सोल — अपनी एज के आगे, उससे ज़्यादा कूल। मास्टर शेफ़ में बाज़ी मारी हुई है, इन्होंने। ख़ाने, ख़ाना बनाने और खाने में माहिर, दिल से फ़ूडी। ऊपर फोटो में हर्ष भाई के साथ है ना, वही। हर्ष भाई की चाची जी, चाचीजी कम दोस्त ज्यादा हैं।
बाहर की बहुत सी बेहतरीन जगहों के बारे में सुनने का मौक़ा मिला। वहां की अजीब-लज़ीज़ रेसिपीज़ के स्वाद के बारे में। बातों, सुरुर और स्वादों में क्या शाम कटी। तब तक, Ollie की रहमत से मछली और मटन तैयार था। पहाड़ों के हवा-पानी में खाना हम कई दिनों बाद खा रहे थे। परमानंद सुख की प्राप्ति है। खा-पीकर हम लोग बाल्कनी वाले कमरे में ऐटीक पर सेट हो लिए।
रात की बारिश के बाद, सुबह जब आँख खुली तो पहाड़ सही से नज़र आए। धुल कर एकदम चमकदार, हंसते हुए, बादलों को टकराने से मना करते हुए। पर बादलों पर किसका ज़ोर, हवा का। सुबह की हवा के हर झोंके से बादल अपनी बनावट लगातार बदल रहे थे। कोई ऊपर पहाड़ की चोटी से टकरा कर कट जाता तो कोई सीधा पाइन ट्री के जंगल में गोते लगाता। लग रहा था जैसे बादल सिर्फ़ आगे-पीछे ही नहीं, ऊपर नीचे भी डोल रहे हों। देखते ही देखते तुरंत सारे पहाड़ ग़ायब, बादल उनपर क़ब्ज़ा कर लेते हैं। सुबह सुबह ऐसी हलचल देखी तो लगा, जैसे पहाड़ की चोटियाँ बोल कर गई हों, हम तो ग़ायब हो लिए, तुम सुनाओ।
वशिष्ट वाला अड्डा – एक जादुई बाल्कनी का पता
पहाड़ों में पहुंचने का सुकून तो मिल गया था, पर फिर भी कुछ जुनून सा तो तब भी बाक़ी था। हमको तसल्ली नहीं मिल रही थी।
जारी है…