15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय | पार्ट – 3

पहाड़ सुकून हैं कि जूनून, यह जानने हम मनाली से आगे निकल लिए!

भाईलोग, बात सीधी-सी है, हम से एक जगह ज्यादा देर नहीं टिका जाता. पहाड़ों में आकर तो खासकर ऐसा होता है. वैसे भी, पहाड़ों में घूमने से कब किसका दिल भरा है. Lagom स्टे से हमारी 15 अगस्त वाली ट्रिप की शुरुआत एकदम लक्ज़री हुई. पिछली रात क्या स्वादिष्ट फिश और मटन बनाया था, साथ में बारिश, बातें और लिटिल-लिटिल पेग, सुरूर बनाने वाले, मज़ा ही आ गया। सुबह उठते ही फिर वो बादलों वाला सीन, जिसने हमारा दिमाग फिरा दिया। तड़के तड़के हम थोड़ा जगतसुख एक्स्प्लोर करने निकल गए. घूम फिरकर वापस आए. Lagom Stay को अपने अड्डों में शामिल करने के लिए प्रॉपर्टी शूट करना था, वो किया। ये सब तैयारी है किसी चीज़ की, आगे बताएंगे क्या है. 

तो अभी तक अपनी 15 अगस्त की ट्रिप एकदम आनंदित चल रही थी. सुबह ब्रेकफास्ट के बाद, दोपहर में रात का बचा हुआ फिश-मटन बढ़िया से गरम करके पेला और फिर सुस्ताते हुए बाहर जाकर बालकनी पर टंग गए. पाइन ट्रीज की हरी चादर, उनके बिच से निकलती नदी और उस पर तैरते बादल; जगतसुख से मनाली का बढ़िया नज़ारा देखने को मिल रहा था.

 बादलों को तब तक देखो जब तक वो आपस में मिलकर घुल न जाएं.

खाना, काम, बादल ताकना, तीनों हो चुके थे, पर हमारी खुजली अब भी गई नहीं थी. खुसुर-पुसुर चालू थी कि अब क्या करें . घर से निकले तो ट्रेक करने ही थे, पर पहले तो मोदी जी के सरप्राइज़ ने ट्रैकिंग के सारे इथुज़िआज़्म की ले ली. बाकी फिर प्लान बदलते-बदलते हमारा मन सा उतर गया. अब तक, ट्रेक पर जाने के लक्षण और मौसम दोनों ही डामाङोल चल रहे थे. इसके लक्षण हमें मनाली तक पहुंचते पहुंचते और जगतसुख में आकर साफ़ दिख गए थे. क्यूंकि Lagom वाले स्टे से हमप्ता ट्रेक के लिए जाया जा सकता है. जगतसुख से प्रीणी, हमप्ता ट्रेक का बेस कैंप, बस कुछ किलो, दो किलोमीटर ही होगा। पर सच बताएं तो हमारा ट्रेक पर जाने का मन हो भी रहा था, और नहीं भी. हम लगोम पर लक्ज़री स्टे और नज़ारों के चलते थोड़ा कम्फर्ट ज़ोन में चले गए थे.

पहाड़ पहाड़,आए न आएं, हम कहां जाएं।

कम्फर्ट जोन इसलिए कि Lagom स्टे बैठकर काम करने के लिए एक बेहतरीन अड्डा है. यहां पर इंटरनेट, बिजली, साफ-सुथरे स्टे के साथ-साथ, बस कनेक्टिवटी, मार्किट, खाने और पीने के सभी ऑप्शन बस कदम भर की दूरी पर ही हैं. मतलब, मनाली वाले नज़ारे और मनाली वाली सुविधाओं के साथ, पर मनाली की भीड़- भाड़ से दूर एक शांत स्टे। 10 से 15 मिनट मुश्किल ही लगते होंगे मनाली से यहां पहुंचने में. हमने भी यहां बैठकर अपना काफी काम निपटा लिया।

पर ट्रिप पर तो हम घूमने के मकसद से आये थे. ट्रैकिंग के मुद्दे पर हो रही खुसुर पुसुर और हाँ-ना की आवाज़ों के बीच से, फिर से, Ollie की आवाज़ आती है — “अबे चलते हैं न कहीं पर, बैठकर बस चिल्ल करेंगे, बहुत हो गया, अब कोई काम-धाम नहीं’’. बात हुई तो इस पर सहमति होते भी देर नहीं लगी. पर इससे हमारा ट्रेकिंग का कितना मन था, यह बात की स्पष्ट हो गई. Lagom वाली बालकनी में पड़े पड़े यही सभी बातें और आगे की प्लानिंग चल रही थी.

Balcony seating of Lagom Homestay in Manali
Lagom Stay की लक्ज़री।

Lagom पर अपना काम ख़त्म हो चुका था. हर्ष भाई के कैंपिंग स्पॉट तक भी चक्कर लगा कर आ चुके थे. आगे चलने की बात पर डीसाइड हुआ कि पहले मेन मनाली चलते हैं. कौन सा ट्रेक, कब करना है, ये बाद में तय करेंगे. तो अपडेटेड प्लान के हिसाब से अपन को अभी पहले मनाली पहुंचना था, और रुकने के लिए एक ऐसा अड्डा ढूँढना था, जहां कोई आता जाता न हो. जहां हम खुद खाना-पीना सकें, आराम फरमा सकें, सुस्ता सकें।

ठिकाने का जुगाड़ करने की जिम्मेदारी भगवान को दी गई. कभी कभी आप लोगों को बेशक लगता हो — ‘’अपुन इच भगवान है’’, पर अपनी टोली में लिट्रली एक भगवान है. भगवान ने अपनी दिमागी शक्ति का इस्तेमाल करके इधर-उधर दो-चार फ़ोन लगाए और जुगाड़ करने में लग गया. शाम हो चली थी और अगला ठिकाना तय हो रहा था. 

german bakery vashisht
जर्मन बेकरी, वशिष्ठ गांव, मनाली

पहले तो हम फिर से मनाली पहुंचे. ‘चिल्ल’ की डेफिनेशन में क्या- क्या आता है, वो सब बाद की बात है. चिल्ल करने का पहला मतलब है, स्वादिष्ट खाने की तैयारी। जहां से पहाड़ों की शुरआत हुई थी, हम फिर वहीं खड़े थे – यानी की मीट मार्किट। हमने इस बार फिश और चिकन उठाया. अब मनाली से अपने को वशिष्ठ जाना था, रास्ता लम्बा नहीं है, ३-४ किलोमीटर की बात है. दिन में तो ग्रामीण- सेवा जैसे टेम्पो मिल जाते हैं, पर रात होने के कारण हमको यहाँ के लिए गाडी करनी पड़ी. हर्ष भाई के Lagom Stay से अपन लोग प्रणव भाई जी के Lost In The Himalayas वाले ठिकाने पर निकल लिए. प्रणव भाई ने फ़ोन पर पहले ही बता दिया था कि घर तक पहुँचने के लिए थोड़ी चढ़ाई करनी पड़ेगी, आसान नहीं होगा। उनकी बात को ध्यान में रखते हुए हम वशिष्ठ पहुँच गए.

vashisht temple
वशिष्ठ गांव , शिव का एक और ठिकाना।

होम स्टे तक चढ़ाई की बात को अपन लोग अच्छे से समझते हैं। रास्ता जितना कठिन होगा, मंज़िल उतनी ही सुहावनी मिलेगी। सब जानते हुए भी, वशिष्ठ मार्किट से होमस्टे तक की उस खड़ी चढ़ाई ने रात में हमारे कुत्ते फेल कर दिए. एक तो शूटिंग का इतना सामान साथ था, ऊपर से रात का अँधेरा, पैर ही नहीं जम रहे थे. किसी तरह हम ठिकाने तक पहुंचे। अभी तक अपने को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हम अँधेरे में कहाँ पहुँच गए हैं. रात होते होते बालकनी से पूरी मनाली वैली झिलमिल नज़र आ रही थी. 

शाम की रहनुमाई में मनाली।

रात में पहुंचे, तो कब बनाते और कब खाते। प्रणव भाई ने पहले ही इस बात को ध्यान में रखते हुए खाना बना लिया था. खाना पीना खाकर, थोड़ी बातें करते हुए, हम वहीँ बालकनी में ही सो गए. सुबह जो नज़ारा दिखा वो शब्दों में ब्यां करना तो नीरस ही होगा। 
अगले भाग में दिखाएंगे की क्या नज़ारा था Lost In The Himalayas वाले अड्डे से।