वशिष्ठ मनाली के चक्कर में!
सुबह की शुरुआत तो हमारी जादुई ही होती थी; सामने रोहतांग तो नीचे सोलांग-मनाली! पर मनाली में एक ही जगह बैठकर चिल्ल करते हमें दो दिन हो चुके थे. अब हमारे पैरों में खुजली मचने लगी थी.
नज़ारे देखते-देखते हमको अब तक यह अच्छे से समझ आ चुका था कि इस बॉलकनी में शत-प्रतिशत जादुई शक्तियां हैं, जो हमें वहां से हिलने नहीं दे रहीं. अगर वहीं बैठे रहते तो सारी ट्रिप वहीं बैठे-बैठे निकल जाती. सब लोकेशन का दोष था, आप बैठे ही ऐसी जगह होते हैं कि नज़ारों की कोई हद ही नहीं. सामने आसमान में टंगे पहाड़ और उनको घेरते बादल आपकी आंखों के सामने उमड़-उमड़कर ऐसे रूप बदलते हैं जैसे कि कोई शो चल रहा हो. पर देर-सवेर हमारी बुद्धि चली, हमने सोचा तो समझा कि ये नज़ारे तो कभी खत्म नहीं होंगे, ये तो बदलते रहेंगे ऐसी ही, हम कब तक बैठे रह सकते हैं. इस करके अब बारी हिलने की और अपनी लोकेशन बदलने की थी.
अपन लोग उठे और वशिष्ठ गांव का चक्कर लगाने के लिए निकल लिए. घूमने की जब बात आती है तो लोग अकसर हमसे पूछते हैं कि कहीं जाएं तो कहां घूमने जाएं, और जाएं तो वहां क्या-क्या देखें। देखो भई, बात ऐसी है कि इन सब पर हम कम विचार करते हैं. घूमने के लिए चाहिए कि बस निकल लो, कुछ भी सोचे बगैर। अगर आप सही में एक्स्प्लोर करने का मादा रखते हैं तो अच्छी जगहें आपको खुद ब खुद मिल जाती हैं. मान लो, आप शांघड़ जा रहे हों, तो देखने के लिए पूरी जगह ही है, कहीं भी घूमो, सब घूमो। होमस्टे से पहले हम नीचे वशिष्ठ मार्किट पहुंचे, सही चटकदार शाम थी. खुद को होश में लाने के लिए पहले चाय पी और घुस गए गाँव में. दो दिन बाद चलकर अच्छा लग रहा था.
वशिष्ठ गांव, घूमने और पहाड़ी लाइफ देखने के लिए एक बेहतरीन जगह है. जगह- जगह आपको हॉट वॉटर स्प्रिंग मिल जाएंगे। ज़रुरत की दुकानें और बैठकर गप्पे लड़ाने के लिए कैफ़े विद व्यू भी. वशिष्ठ गांव के पीछे की पहाड़ी को देखने पर आपको कई सारे वॉटरफॉल दिखेंगे – जोगणी वॉटरफॉल इन्हीं में से एक को कहते हैं। नीचे-नीचे इन्हीं वॉटरफॉल का पीछा करते हुए, गांव की आड़ी-तिरछी गलियों से होते हुए हम मेन मनाली रोड पर पहुँच गए. यहां तक आते-आते प्रणव, जो कि लॉस्ट इन द हिमालय के होस्ट है, ने बताया कि अगर हम होमस्टे के पीछे वाली क्लिफ पर चढ़ जाएँ, और रोहतांग की ओर चलना शुरू कर दें तो ये सारे वॉटरफॉल रास्ते में पड़ेंगे।
पहले हमने सोचा कि वॉटरफॉल की और ही चला जाए पर उतनी देर की रौशनी नहीं बची थी. अगले दिन आने का सोचते हुए हम दूसरी तरफ हो लिए. होमस्टे की बालकनी से देखने पर बहुत सी लोकेशन हमें दिखी थी जिन तक पहुंचा जा सकता था. हम उन्हीं को फॉलो कर रहे थे. इसी चक्कर में मनाली रोड छोड़, ब्यास नदी पर बने एक पुल पार करके हम दूसरी तरफ चले गए. वशिष्ठ अब नदी के दूसरी तरफ था. यहां पर फिर हमने सोचा कि वापस चलें, पर बातों के चाव में हम आगे ही निकल लिए.
आगे बढ़ते बढ़ते प्रणव ने हमें बताया कि अब वापिस वशिष्ठ जाने के लिए या तो हमें यहीं से उल्टा होना होगा, या फिर मनाली जाकर ब्यास नदी क्रॉस करनी होगी। इसके अलावा बीच में नदी पार करने का और कोई पुल नहीं है, एक था जो बह गया. हमने कहा अब चल रहे हैं तो चलते ही हैं. ऐसे ही घूमते फिरते हम लोग वशिष्ठ से ओल्ड मनाली तक पहुंच गए. बातों बातों में हमारा बढ़िया ट्रेक-सा हो गया.
ओल्ड मनाली में चाय पीकर हम मनाली बस अड्डे की तरफ निकल गए. प्रणव वहीं रहता है, उसको मनाली का चप्पा-चप्पा पता है. पर इससे हमें क्या, मेन बात तो यह कि उसको स्वादिष्ट खाने-पीने के अड्डे पता हैं. इस चीज़ का भरपूर फायदा हमें मनाली में बेहतरीन चाय, जलेबी और रबड़ी खा कर मिला। रात होने के साथ-साथ हलकी बारिश होने लगी थी, और वापस होमस्टे जाने का वक़्त हो चला था. इस चक्कर में खाने का एक धांसू अड्डा हम नहीं देख पाए, पर दिल्ली-वापसी के समय हम होकर आये वहां।
आगे बताएंगे, पढ़ते रहिये।