first base camp at Hampta Pass trek

15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय | पार्ट – 8

प्रीवियस्ली ऑन “15 अगस्त वाली ट्रिप”

आज़ादी मनाने हम तो चले हमप्ता !

15 अगस्त वाली ट्रिप का पंद्रह अगस्त आ चुका था और हम या तो वशिष्ठ में बैठे चिल्ल कर रहे थे या तो घूमने के नाम पर मनाली के चक्कर लगा रहे थे. इस दौरान बारिश, बादल, किताबें, दावतें, झख मारना सब हो चुका था. अब तक की ट्रिप के हिसाब से ये कतई कम नहीं था, पर दिल्ली से तो हम ट्रेक करने निकले थे, उसका क्या. हमारी आदतों, मौसम और सरकार की बदलती बातों के चलते अब तक हमारी ट्रिप हर मोमेंट पर बदलती आई थी. घूमने के लिए डेस्टिनेशन कभी कश्मीर ग्रेट लेक्स ट्रेक हुई तो कभी गुरेज़ वैली, जो फाइनली फिर मनाली हुई. मनाली, वशिष्ठ दोनो जगह रुक लिए, घूम भी लिए, पर अब और क्या किया जाए, कहाँ घूमा जाए. जोगणी फ़ॉल से वापस अड्डे पर पहुँचने के बाद खा-पीकर यही सब सोचते-सोचते हम सो गए. मन था कि सुबह उठकर जो दिमाग में आएगा उधर निकल लेंगे, पर मनाली से कहीं बाहर. उठे तो यह दिखा (फ़ोटो – नीचे), आँखें खुली रह गई — नज़ारा इतना साफ़ कि चटक, धुले हुए आसमान में बर्फीली चोटियाँ दिखी. हमने तुरंत मन बना लिया, ट्रेक करेंगे. 

जादुई बालकनी से एक आम सुबह!

वशिष्ठ वाले अड्डे के एकदम बग़ल से भृगु लेक का रास्ता निकलता है. हम भृगु जा सकते थे, पर पता नहीं मन में हमप्ता (अंग्रेज़ी में Hampta लिखा जाता है, वहां के लोग हमटा बोलते हैं, हमें कुछ पक्की इनफार्मेशन नहीं है कि क्या बोलते हैं, बाकी आप समझ जाओ) का राग छिड़ा था, नाम सुना था हमने इस ट्रेक का किसी से. तो भाई लोग मन की सुनते हुए हमप्ता ट्रेक डिसाइड हो गया. पांच बन्दों की टोली में, तीन वशिष्ठ रुक गए और दो भाई बैग उठा के निकल लेते हैं.

मौसम एकदम चटक साफ था, पीछे तीन-चार दिन घिरे रहने के बाद अब खुला था. हमने सोचा अभी अगले दो-तीन दिन तो अब साफ़ ही रहेगा. वशिष्ठ मार्किट में चाय पीकर, हम मनाली पुल तक पैदल निकल लिए. बसों के चलने न चलने की बातें हवा में थी, पर अपने को तो जाते ही बस मिल गई. प्रीणी गांव से हमप्ता के लिए चढ़ाई शुरू होती है, पंद्रह-बीस मिनट में हम वहां थे. बस में काफी कैरक्टर मौजूद थे, उनमे से दो लौंडे हमारे साथ प्रीणी उतरते हैं. फुल रकसैक बैग, पतीले, खाने का सामान लेकर चल रहे थे. उनमें से एक हमसे हमप्ता जाने का रास्ता पूछता है!
हमने पूछा — “पावर-बैंक है क्या तुम लोगों पे.

चार पॉवरबैंक सुनकर हमने कहा कि हो लो साथ, हम भी वहीं जा रहे हैं. घर से बाहर निकलने का यही तो स्वाद है, आपको लोग मिलते हैं. और अगर ट्रेक पर चलने के साथ कोई मिले तो बात ही क्या. प्रीणी गांव के आखिर में सरकारी स्कूल है, और स्कूल के थोड़ा ऊपर से सेथन और आगे बैराज तक जाने के लिए सड़क निकलती है. जहां यह सड़क खत्म होती है, असल ट्रेक वहीं से शुरू होता है. हालाँकि ट्रेक नीचे प्रीणी से भी शुरू किया जा सकता है, पर अपना ऐसा कोई इरादा नहीं था. कुछ एक मिनट हमने गाड़ी के लिए इधर-उधर देखा और फिर सड़क-सड़क पैदल चलने लगे. पंद्रह अगस्त — आज़ादी का जश्न अब चलने में आ रहा था. दूसरे दो भाईलोगों को घुमक्कड़ी का कीड़ा अभी कॉलेज लाइफ से ही लग गया है. आज़ादी मनाने का इनका टशन कुछ हट के था, हमने रिकॉर्ड कर लिया।

अब हमप्ता ट्रेक जाने वाले चार लोग हो चुके थे. हम चल रहे थे इतने में पाँचवाँ किरदार हमको एक कैंटर वाली बोलेरो में जाते दिखा. गाड़ी में रकसैक देख कर हम समझ गए थे. पर धूप में चलते चलते हमारा माथा इतना घूम रहा था कि देखते ही देखते लिफ्ट जाती रही. जैसे जैसे कैंचियां पार करते हुए हम चल रहे थे, बढ़ती धूप के साथ गाड़ी दिखने के आसार कम लग रहे थे. नीचे प्रीणी से ट्रेक करना होता तो पेड़ों में से होते हुए निकल लेते, ऐसे सड़क पर कैंचियां भरते नहीं. लिफ्ट के चककर में चलते चलते आठ — दस कैंचियां चढ़ कर ऊपर आ गए. हमारे को तो क्या था, चलना ही था, चलते रहते शाम तक! पर कॉलेज वाले भाई लोग ट्रैकिंग में अभी थोड़े नए थे और हमें पॉवर बैंक्स का लालच भी था — इसलिए हमप्ता ट्रेक के पहले बेस तक पहुंचने के लिए लिफ्ट ज़रूरी थी, वरना पहुँचने में रात तो होनी थी. 

चिलचिलाती धूप में सड़क नापते लोंडे।

भगवान ने 24 कर्व्स की बात कही थी, इसी कारण सही कड़क धूप में हम सड़क नाप रहे थे. पंद्रह कर्व्स तक पहुँचते-पहुँचते हमको लगा कि गाड़ी न भी मिले तो क्या, अपन लोग सही चल रहे हैं, चलते रहते हैं, कहीं रुकने से तो बेहतर ही रहेगा. भाईलोग चौबीसवीं कैंची भी पार कर दी, मिला क्या कुछ नहीं! वही सड़क मुड़ती-मुड़ती ऊपर की और ही जा रही थी. हमारे नए को ट्रेकर्स के 70 लीटर वाले थैले में से काजू बादाम की पोटली निकली थी. तो बॉडी में चलने की तो पूरी एनर्जी थी पर दोपहर में कैंचियां चढ़ते-चढ़ते खोपड़ी भिन्ना चुकी थी. हम धीरे धीरे चल ही रहे थे कि पीछे से एक गाडी आई, पर छोटी गाड़ी थी और दो लोग उसमें पहले ही सवार थे. हम चारों का सामान और साथ बैठ पाना मुश्किल था. पर आज़ादी के जश्न के दिन अपनी भारतीयता का परचम बुलंद करते हुए हमने अपनी भारतीय जुगाड़ विद्या का इस्तेमाल किया और सेथन पहुँच गए!

Prini Sethan Village road
प्रीणी से सेथन गांव वाली सड़क का कर्व नंबर 24.

सेथन गॉंव अपने को बहुत सेक्सी लगा, क्या माहौल और क्या नज़ारे दिखते हैं वहां से. हफ्ता बिताने की तो बढ़िया जगह है. हमने गाड़ी से उतरकर पहले एक कैफ़े में खाना-पीना खाया. मोबाइल नेटवर्क मिलने का यह आखिरी पॉइंट था, इसके बात हमप्ता पार करके छतरू तक मोबाइल नेटवर्क का मतलब नहीं था. यह बात सुनकर कॉलेज वाले एक भाई ने तो हथियार डाल दिए और वापस जाने की कहने लगा. हम क्या ही कहते — किसी के चलने न चलने पर प्रेशर नहीं बना सकते! फिर वो मज़ा नहीं रहता! हमप्ता जाने वाले चार में से अब तीन लोग रह गए. गाड़ी की लिफ्ट यहीं तक की थी. यहाँ से आगे बैराज तक पैदल जाना था और फिर वहां से ट्रेक शुरू. खाना खाते ही चलने की स्पीड बढ़ी तो सड़क नापने में हमने कसर नहीं छोड़ी. खड़ी चढ़ाई भी कम हो चुकी थी, तो एक के बाद एक कर्व्ज़ पार करते हम आगे बढ़े.

sethan village
सेथन विलेज से कुछ कदम आगे.

सेथन से कुछ घंटा भर चल कर हम बैराज तक पहुँच गए. बैराज के बाद थोड़ा और चलकर सड़क ख़त्म हो जाती है. सड़क की इस चढ़ाई ने हमारी अच्छी खिंचाई कर दी. लिफ्ट मिल गई तो अच्छा हुआ, हम समय रहते ही पहुँच गए. सड़क के एंड पोईंट पर खाने-पीने के एक दो छोटे अड्डे हैं. लोकल बन्दों के लिए यह ख़ुफ़िया अड्डा भी है, एकदम सुम्मे (खोपचे) में. हम तो पहले ही खा चुके थे, तो हमने सीधा ही ट्रैकिंग शुरू कर दी. ज़ल्दी से ज़ल्दी किसी बेस कैंप पर पहुँच कर अपना टेंट लगाना था और रात के खाने का जुगाड़ करना था.

Bairaj on Hampta trek
बैराज पॉइंट – यहां सड़क ख़त्म और ट्रेक शुरू

हमप्ता ट्रेक की शुरुआत करते हुए छोटे-बड़े नालों को टापते अपन लोग आगे बढ़े. शाम होने लगी थी, पर मौसम खुला होने के कारण अच्छी रौशनी थी. पहाड़, पेड़, पानी सब अलग अलग चमक रहे थे. शाम में ट्रैकिंग का मज़ा फुल ऑन आ रहा था. अब जा के लग रहा था कि घर से पहड़ों में घूमने आए हैं. पहाड़ों में तो हम वशिष्ठ में थे, पर उधर जादुई बालकनी में बैठे हम अपने कम्फॉर्ट ज़ोन में थे. ट्रेक के लिए तो इससे बाहर निकलना ही था. जंगल में से कुछ आध घंटा ही आगे चले होंगे कि एक छोटी से चढ़ाई के बाद सामने नज़ारा एकदम खुल गया. सामने दूर तक वैली के बीचों बीच बहती नदी नज़र आ रहा थी. नदी से कुछ ऊँचाई पर कई सारे लाल-पीले टेंट दिखे तो हम समझ गए कि अपन लोग हमप्ता के पहले बेस कैंप जोरबा पहुँच गए. ऊपर से आप तो जानते ही हैं कि चलने के बाद रुकने का ठिकाना दिखने का सुकून-ए-एहसास क्या होता है. इस नशीली शाम के साथ हमप्ता ट्रेक का हमारा पहला दिन रहा.

first base camp at Hampta Pass trek
हमप्ता ट्रेक का पहला बेस कैंप – जोरबा।

हालाँकि हम यहां नहीं रुके. हमने पहले सोचा कि यहीं टेंट लगा लें पर अँधेरा होने में अभी टाइम था. और चीका, जो कि हमप्ता पास का अगला बेस कैम्प है, यहां से ज़्यादा दूर नहीं दिख रहा था. हमें वहीं से अगले टेंट नज़र आ रहे थे. ट्रेक पर जितना आगे चला जाए वही बेहतर, यही सोचकर हम आगे चलते बने. आगे की कहानी अगले भाग में.

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