balu ka ghera campsite during hampta pass trek

15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय | पार्ट – 9

असली नज़ारे देखने हैं तो ट्रेक करो प्यारे, ट्रेक! 

प्रीवियस्ली ऑन “15 अगस्त वाली ट्रिप”

हमप्ता पास ट्रेक पर हमारा पहला कैंप साइट चीका रहा, क्यूंकि पिछली अँधेरा होने से पहले हमने जोरबा कैंपसाइट पार कर लिया था. हमप्ता पास ट्रेक पर रुकने की बात करें तो भी जोरबा ही पहला ऑप्शन है. यहाँ पर आपको इंडिया हाइक वालों के टेंट और कुछ-एक दुकानें मिल जाएंगी. खाने-पीने के लिए दाल-चावल/राजमा, मैगी, और चाय मिल जाती है. रुकने के लिए आपके पास अपना टेंट हो तो ज्यादा बेहतर रहता है. अपन लोग के पास अपना टेंट तो था ही, सीधा चीका जाकर रुके. टेंट लगाने की बेहतरीन जगह मिल गई, साथ खाने का इंतज़ाम, और बात करने को दो भयंकर गपोड़ी भाई और मिल गए.

cheeka campsite -- the only shop
चीका कैंपसाइट पर उन दो भाइयों की दूकान

अजय और विजय, दोनों भाई ट्रेकिंग सीजन में चीका में ही मिलते हैं. लोगों को खिलाते हैं, रुकवाते हैं, और हमप्ता ट्रेक का रास्ता बताते हैं. हम उम्र तो थे, पर ये दोनों किस लेवल के चिल्ल हो सकते है इसका अंदाज़ा हमको तभी लग गया था, जब इनमें से एक को हमने दुकान के आगे बैठकर की-बोर्ड बजाते सुना. कहता है कि पहले मनाली में खूब गंध मचा ली, अब यही बैठकर संगीत बजाने में सुकून मिलता है. ये बातें सुनकर हमको कितनी तसल्ली-सी मिली वो हमको ही पता है. ऐसे ही बन्दे होते हैं जिनकी बातों-बातों में आपको काफी कुछ सीखने को मिल जाएगा। यात्राओं के मायने भी ऐसे ही लोगों के मिलने और उनकी बातों में से निकलते हैं.

bawray banjaray at cheeka during hampta trek
पहाड़ों में चाय और बातें कभी ख़त्म होती हैं क्या।

जोरबा न रूककर चीका रुकने का एक कारण यह भी था कि यहां से ट्रेक पर आगे बढ़ने के लिए के एक बड़ा-सा नाला पार करना होता है और चीका कैंपिंग स्पॉट नाले के ठीक बगल में है. तो अगले दिन के लिए सहूलियत रहेगी सोचकर हम यहीं रुके। अब चीका की शाम थी, खाली समय था और करने को बकैती। तीन लोग तो हम थे ही, दुकान वाले दो भाई लोग हो गए — बैठकर सरे शाम चाय-संगीत चलता रहा. इस बीच हमारे साथ एक और ट्रेकर जुड़ चुकी थी. जब प्रीणी से सेथन सड़क सड़क आ रहे थे, तब टैम्पो में जाते तो देखा था इनको. ये मोहतरम भी गजब घूमती हैं, 9 से 6 की नौकरी के बावजूद इनका इंस्टाग्राम आपको हमेशा चालू दिखेगा। इनके मिलने से महफ़िल में पांच से छः लोग और हमप्ता जाने के लिए तीन से चार लोग हो गए. बढ़िया शाम बीती. अपने अपने टेंटो में सोने जाने से पहले हमने अच्छे से खाना पेल लिया. खाने में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए भाईलोग, क्योंकि सही से खाएंगे नहीं तो पहाड़ कैसे चढ़ेंगे!

blissful cheeka campite durinh hampta pass trek
और भाई लोग, ये है चीका कैंपिंग एरिया।

अगले दिन सुबह उठे तो क्या नज़ारा देखने को मिला। जाना तो हमें आगे था, पर अच्छी जगह पर साथ बैठने को अच्छे लोग मिल जाएं, तो कहां हिलने का मन करता है. बाकी हम चलने में ठीक-ठाक हैं, यही सोचकर कर अपन लोग बैठे गप्पे मारते रहे. अच्छी धूप खिली थी, तो चलने को पूरा दिन पड़ा था. इंडिया हाइक वालों का ग्रुप और बाकी ट्रेकर्स सुबह जल्दी निकल चुके थे. चलने को भी इतना ज्यादा नहीं था, तो हम आराम से खा-पीकर 10 बजे तक निकले। सही मायनों में तो हम आज ट्रेक कर रहे थे. पिछले दिन तो बस सड़क पर जूते-चप्पल घिसे थे. नाला पार करके अपन लोग पत्थरों को टापते-टापते आगे बढ़ चले. आज अपने को सीधा बालू का घेरा, जो कि ‘पास’ से पहले आखिरी कैंप साइट है, पहुंचना था. 

leaving behind the cheeka campsite
और वो रह गया चीका पीछे।

कहने के लिए हमप्ता पास ट्रेक तीन से चार दिन का है. अगर आप अच्छे चलने वाले हैं तो प्रीणी से चलकर दो दिन में भी पार किया जा सकता है. बैराज तक सड़क है पर उसके बाद से काफी दूर तक हमप्ता ट्रेक नदी के सहारे सहारे जाता है. मतलब पानी और नज़ारों की कमी ही नहीं होगी। नदी की ओर चलते हुए नज़रें उठा के रखियेगा, तो दुनियाभर के झरने दिखते रहेंगे.

bawray banjaray on hampta trek
कुछ भी हो, रुकते-थमते, पर चलते रहने का.

चीका से अगले कैंपिंग तक चलने में ट्रेकिंग का असली स्वाद आता है. इतना मज़ेदरा रास्ता है, वैली के मुड़ने से पहले इसकी चौड़ाई घटती जाती है. रास्ते में कई सारे नाले और झरने पार करने होते हैं. पर ये बारिश के मौसम में ही देखने को मिलते हैं. चीका की तरह ही दूसरे कैंप स्पॉट के बगल से भी एक बड़ा नाला पार करना होता हैं. बारिश में तो बिना रस्सी के इसको पार करना मुमकिन नहीं। हमने कोशिश की पहले, पर ज्यादा खतरा भांप कर रोप वे से पार करना ठीक समझा। इसकी भी अलग कहानी है — इंडिया हाइक वाले भाईसाब ने बंधी हुई रस्सी से नाला पार कराने के सौ रुपए पर बंदा लिए. इतने में हमने उनके ग्रुप को चलने में पछाड़ दिया था और  रुकते-थमते मज़े करते, आखिरी कैंप स्पॉट की और बढ़ चले. 

bawray banjaray on hampta trek
अच्छे नज़ारों को कहां बख़्शते हैं हम.

अपन फुल मगन होकर बस चले जा रहे थे. जहां पांच-दस मिनट रुकना होता, वहीं दो-चार फोटो क्लिक कर लेते. बारिश के मौसम के आसपास ट्रेकिंग करने का एक स्वाद और है – रंग बिरंगे फूल और पौधे। अब अभी तक वैली ऑफ़ फ्लावर्स तो हम गए नहीं है पर जैसा सुना है, ये वाली जगह बिलकुल वैसी ही है – बिना ब्रह्म कमल के!

balu ka ghera campsite during hampta pass trek
हमप्ता पास का पहला व्यू, बालू का घेरा से.

चीका से सुबह दस बजे निकलने के बाद भी हम लोग दोपहर के कुछ तीन-साढ़े तीन तक आराम से बालू का घेरा पहुँच गए. यहां से अपने को सामने वो पहाड़ दिख रहा था जिसके पार जाना था. मन तो था कि बिना रुके निकल लें, शाम को सीधा लाहौल, छतरू पहुंचे और वहीं रात बिताकर अगले दिन काजा से आती पहली बस में बैठकर ही मनाली पहुंच जाएंगे। पर अपने साथ दो पंटर और थे, उनको ये प्लान थोड़ा कम सूट करता। इस करके हमने यहीं रुकने का मन बना लिया और अपना टेंट यहीं चन्द्रा भाईजी की दूकान के करीब गाड़ दिए. अब इंतज़ार बस अगली सुबह का था, और फिर अपन लोग हमप्ता के उस पार होंगे।

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