कभी कभी लगता है कि कितना अजीब होता होगा न पानी बनना? पहले पिघलना है , भाप बनकर आसमानों में टिक जाना है या कहीं किसी कोने में जम कर बैठ जाना है फ़िर से पिघलने के लिए — ये चुन पाना ही कम है क्या? अपने जीवन चक्र में रमे हम Le Ladakh की फ़ोटो और वीडियो के लिए कम्प्यूटर पर जगह बनाने बैठे। कुछ 5 TB डेटा में से ये बता पाना कि क्या रखना है क्या नहीं रखना है एक बेहद ही कुतार्किक, बेफ़ज़ूल और दिमाग खराब करने वाली प्रक्रिया है और आजकल हम इस प्रक्रिया से निरंतर गुज़र रहे हैं – गुज़र क्या, बह रहे हैं. यादों के नदी में. कितना कुछ है जो बहने की जगह भागने के चक्कर में देखा ही नहीं गया. तो हमने सब देख डाला। एक एक कोना और एक एक फ़ोटो, और जो सबसे पहला कलेक्शन बन कर तैयार हुआ है उसका नाम रखा गया है – Bawray Banjaray Photo Blog On Rivers And Water Bodies Of India.
धरती, आकाश, जल और आग – हवा के अलावा पांच तत्वों में से सब कुछ है हमारी हार्ड ड्राइव में, पर शुरुआत जल से कर रहे हैं. तस्वीरें देखिए:
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चंद्र ताल की वो ठंडी रात जब मिल्की वे के फ़ोटो लेने के लिए आधी रात को झील के किनारे बैठ के बिना हिले कैमरा चलाना पड़ा…
या फिर सुबह टेंट खोलते ही पैंगोंग की नमकीन खुशबू, जो एक बार ज़हन में बस जाती है न, तो फ़िर ताउम्र साथ ही रहती है।
एक तरफ़ पार्वती के गर्म पानी के सोतो में पड़े पड़े दिन यूँ ही गुजार देना हो या डल लेक पर बैठे सही और गलत के अंतर को धूसर होते हुए देखना – इन नदियों और झीलों ने हमें ये समझना सिखाया है कि श्वेत और श्याम के बीच कई और रंग होते हैं जिनकी हम आम तौर पर परवाह किए बिना बस अपने अपने सफ़ेद और काले हिस्से ढूंढते रहते हैं.
किशनसर – विशनसर के किनारे एक टापू पर टेंट लगाकर एक झील के पानी को दूसरे में बहते हुए देखना एक बेहतरीन कविता सुनने जैसा है. कविता से याद आई, हमारी जयपुर की एक दोस्त, जॉली डिसूजा की लिखी एक कविता का. जॉली घूमती हैं, और अपनी कविताओं में जीवन का ज्ञान बांटती हैं. हुआ यूँ कि गुलज़ार साहब के जन्मदिन पर जॉली से बात करते करते हम जॉन, दाग़, मज़ाज़, ग़ालिब और मीर से होते हुए हिमालय पर आ पहुंचे और जिक्र आया पैंगोंग लेक का। हम पूछ बैठे – “कोई कविता इन झीलों, नदियों, झरनों पर भी हो तो पढ़ाइये। “
जॉली ने भी फट हमारे इनबॉक्स में ये चिपका दिया, पढ़िए:
नदी बहाव नहीं ठुकराती न!
ना हर जगह एक,
न एक जगह का पानी एक!
एक लम्हे एक जगह हम जिस पानी को देखते हैं ,
हमारी नज़र पड़ते पड़ते ,
वो पानी बदल जाता है --
जैसे रौशनी,जैसे तारे!
वक़्त जैसे मायने ही नहीं रखता,
खत्म हो जाता है समय उसके आगे,
हर लम्हा पूरा होकर भी
हर लम्हा खत्म --
ऐसे ही तो जीना होता है न!
कल आज और कल ,
कुछ मायने नहीं किसी के,
खुद में रहकर भी
हर पल नया बहाव ही तो रखना होता है ना हमें भी --
हमारा पानी, हमारी साँसे हो जैसे !
हर लम्हा जी लें,
पूरा और खत्म करके,
तो जाने कितने जीवन जी लें एक में --
खामोश वीराने में भी और दुनियावी आडम्बर में भी!
कभी शांत, कभी अल्हड़,
बस ख़ुद में बहना ही तो होता है!
नदी बहाव नही ठुकराती न --
इसलिए हर पल नयी होती जाती है,
बहने देती है खुद में हर लम्हें नया जीवन!
नदी बहाव नहीं ठुकराती है!
— जॉली डी’सूजा
चेक आउट आवर गाइड टू विलेजेज़ ऑफ़ स्पीति वैली
जब कविता ठीक से की गई हो तो उसे सिर्फ पढ़ा नहीं जाना चाहिए, बांटना भी चाहिए और उसके जवाब में एक और कविता कहनी चाहिए – आखिर बहना ही तो है! तो जॉली की कविता के जवाब में पेश-ए-ख़िदमत है हमारी लेखनी का बहाव – उन सभी नदियों और झीलों जिन्होंने यूँ ही बस बहते बहते हमारा वक़्त बांटा है, उनको समर्पित!
तो आप यह कविता भी पढ़िए और एक झलक देखिए इन तस्वीरों को जिनमें से किसी एक की नदी में पैर डाल हम डूबते सूरज से कल की बाकी बातें और आगे बढ़ाने जा रहे है, तब तक ख़ुशामदीद.
ये पानी भी न,
घाटियों से परे
ऊँचे, काले-धूसर, भयानक
पहाड़ों के किसी कोने में
दुबक के बादल बना बैठा होगा
सर्दियाँ उसे जमा देती होंगी,
बर्फ़ बना बना जलता होगा वो
विरह की ताप,
पिघल जाता होगा फिर पानी बन के!
किसी नदी सा उद्दंड
सुस्ता लेता होगा किसी झील में
या फांदता होगा पहाड़ किसी झरने से!
आओ ज़रा हम भी बैठें
इन पहाड़ों में
पानी किनारे
और ख़ूब रोएं
और तब तक रोएं
जब तक कि
बुद्ध नहीं बन जाते!
हमारी Rivers and Water Bodies of India कलेक्शन कैसी लगी, नीचे कमेंट सेक्शन में ज़रूर बाइयेगा। और हाँ, जॉली की तरह आपको भी अपनी बात हमसे शेयर करनी हों तो बेशक करें।
हमें पसंद आईं तो हम दूसरों को भी पढ़ाएंगे – जैसे आप अभी पढ़ रहे हैं.
इसके बाद, देखिए सैंज घाटी में शांघड वाले मैदान की सबसे ख़ूबसूरत तसवीरें