Traditional huts as home stays in Majuli

Bawray Banjaray In North East – Live Blog

अपना नार्थ ईस्ट वाली ट्रिप रहा बहुत शानदार – दिल्ली से गुवाहाटी, गुवाहाटी से माजुली, माजुली से हार्नबिल फेस्टिवल, हार्नबिल से आसाम के एक छोटे से कसबे करीमगंज और पघिर वहां से मेघालय – 10 दिन कैसे बीत गए, कुछ पता ही नहीं चला.
ट्रिप के दौरान, बहुत साड़ी कहानियां, किस्से और अप्डेट्स हम शेयर नहीं कर पा रहे थे. तो ये रहा बढ़िया जुगाड़ – अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर हम अपने पूरी ट्रिप की कहानी बयां कर रहे हैं. नीचे आप सभी पोस्ट क्रमवार तरीके से पढ़ सकते हैं.

1. ये लो जी आ गए हम बावरे बंजारे वापस! 😊
नॉर्थ ईस्ट भारत की हमारी पहली यात्रा सफल रही।

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बहुत सारी नई जगहें गए, वहाँ के लोगों से जितना मिल सकते थे मिले, उनसे मुख़ातिब होकर वहाँ के ढेरों क़िस्से सुने तो कुछ उनको सुनाए। सूरज का पीछा किया ,खाने के स्वाद अनोखे खाए। काफ़ी सारा घूमे, बहुत हँसे, कुछ गुनगुनाए। . तो अब हम तो हो आए पर नॉर्थ ईस्ट भारत घूमने की अगली आपकी बारी है। और अगर नॉर्थ ईस्ट घूमने को लेकर आप सही में सीरीयस हैं तो आपके लिए हमारे पास जानकारी ढेर सारी है।
करना कुछ नहीं है बस साथ बने रहिए और #bawraybanjarayinnortheast को फ़ॉलो करके वहाँ से आने वाले सभी स्टोरी और विडीओ को पढ़ते रहिय, देखते रहिए! क्या पता नॉर्थ ईस्ट को जानते जानते आपका अगला ट्रिप वहीं के लिए बन जाए।
जल्द मुलाक़ात होगी! 😃🙏🏽🤘🏽 .

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2. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात – शुरुआत..

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अगर हम कहें कि बाहर कहीं ऐसा भी एक जहांन है जहाँ आकाश में सिर्फ़ सूरज का सिक्का चलता है। तो मानेंगे आप? आसमान उसका पर्सनल कैन्वस है वहाँ, जिसपर वो आते-जाते अपनी कलाकारी करता है। .
बादलों को भी वो साथ में लपेट लेता है, वो भी उसके रंगों पर नाचते नज़र आते हैं। भाई साब, कमाल का माहोल बनता है। हर रोज़ दिन में दो बार सारा समां रंगा होता है। सूरज जब सुबह निकलता है तो तारों को रोशनी में धूमिल करता नए दिन का आग़ाज़ करता है और शाम को विदाई लेते समय आसमान पर नकाशी करता दिखता है।
सूर्योदय और सूर्यास्त का अपना अपना एक पहर है वहाँ। सुबह और शामें लम्बी होती हैं। बैठकर देखो तो सिर्फ़ सनराइज़-सनसेट वाली जादुई दुनिया एकदम असलियत लगती है। . इसी जादुई दुनिया की ओर रूख करते हैं और चलते है भारत के नॉर्थ ईस्ट स्टेट्स; असम, नागालैंड और मेघालय की ओर जहाँ सूरज जल्दी उगता है।
पोस्ट में आपसे अपनी नॉर्थ ईस्ट की 10 दिन की पूरी आयटिनरेरी शेयर करेंगें। जिन जगहों पर गए वहाँ की इन्फ़र्मेशन भी रहेगी ताकि आप अगर जाने का मन बनाएँ तो जो ज़रूर जाएँ। .
बाक़ी जो हमको दिखा और जो हमने ट्रिप पर किया, जो हमारा ‘दर्शन’ हुआ वो तो आपसे बख़ूबी शेयर करते रहेंगें। 😊🙏🏽

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3. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात – पहला दिन, दिल्ली से गुवाहाटी।

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तो हमारे नॉर्थईस्ट ट्रिप की शुरुआत हुई गुवाहाटी से। अगर आप भारत के नक़्शे में असम को देखेंगे, तो आपको मिलेगा कि यह नॉर्थईस्ट इंडिया के सेवन सिस्टर सट्टेस के एकदम केंद्र में है। असम के ठीक ऊपर आपको अरुणाचल प्रदेश, दाएँ तरफ़ नीचे नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा तो बाएँ तरफ़ नीचे मेघालय दिखेगा। गुवाहाटी बाक़ी सभी राज्यों से वेल कनेक्टेड भी है। यहाँ पहुँचने के लिए आपको ट्रांसपोर्ट के काफ़ी ऑप्शन मिल जाएँगे और फिर यहाँ से आगे दूसरे नॉर्थईस्ट स्टेट्स तक आसानी से जाया जा सकता है। मतलब गुवाहाटी को आप नॉर्थ ईस्ट ट्रिप के लिए स्टार्टिंग पोईंट की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। वो ही हमने किया।
इस ट्रिप की एक ख़ास बात यह भी रही कि इस बार हमने यातायात के लगभग सभी माध्यमों से ट्रेवल किया; ट्रेन, हवाईजहाज़, गाड़ी और नाव, सबके स्वाद लिए। दिल्ली से गुवाहाटी तक हमने हवाई यात्रा की। मौसम साफ़ था तो हवा में ऊपर उठते ही हिमालय की शृंखलाओं के दर्शन हो गए। नीचे बादल थे और बादलों से झाँकती ग्रेटर हिमालय की ऊँची चोटियाँ। लगा कि हिमालय के लिए हमारी यात्रा दिल्ली से ही शुरू हो गई हो – ये बात अलग है कि इस बार हम हिमालय के पूर्वी छोर की तरफ़ बढ़ रहे थे।
पूर्वोतर मे हिमालय की पहाड़ियाँ छोटी और फैली हुई हैं। ये सभी पहाड़ियाँ वर्षा-वनों से ढकी हुई हैं। इन पहाड़ियों के बीच आपको खुले मैदान दिखेंगे जो दिसम्बर में कुछ जगह पानी से तो बाक़ी जगह धान के खेतों से भरे, हरे-पीले दिखेंगे। खेतों के आसपास छोटे क़स्बे और सुपारी के पेड़ों की भरमार मिलेगी।
गुवाहाटी के क़रीब पहुँचते ही दर्शन हुए ब्रह्मपुत्र के। ब्रह्मपुत्र नदी असम की पहचान है, उसके अस्तित्व का बहुत बड़ा हिस्सा है। ब्रह्मपुत्र की ही वजह असम को धान, बाँस और मछलियों की अनेकों प्रजातियाँ मिलती हैं। हालाँकि हर साल असम को बाढ़ से सबसे ज़्यादा नुक़सान भी यही नदी पहुँचाती है। पर क्या करें, यही क़ुदरत का खेल है। . दोपहर हम दिल्ली से चले और शाम को हम गुवाहाटी थे। शाम वहीं शहर में बिता कर रात हमने काटी दोस्त के घर। प्लान था अगली सुबह तड़के निकलने का।
आगे काफ़ी लम्बा रास्ता हमारा इंतज़ार कर रहा था। ट्रिप का अगला पड़ाव कहाँ का था वो अगली पोस्ट में बताएँगे। नॉर्थईस्ट भारत के बारे में अगर कुछ सवाल ज़हन में हैं तो आप बिना किसी हिचकिचाहट पूछ सकते हैं।
तब तक के लिए रूखसत लेते हैं।🙂🙏🏽

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4.नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात! दूसरा दिन – गुवाहाटी से माजुली द्वीप तक

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ट्रिप के दूसरे दिन को आप पहला भी कह सकते हैं क्यूँकि पिछली शाम तो गुवाहाटी पहुँचे ही थे। बीच में बस एक रात गुज़री और फिर अगली सुबह 6 बजे हम रेड्डी थे अपनी गाड़ी में आगे निकलने के लिए। ट्रिप की पहली डेस्टिनेशन रखी हमने माजुली द्वीप, असम में ही है। गुवाहाटी से कुछ 345 किलोमीटर दूर ब्रह्मपुत्र नदी पर। यह दुनिया के सबसे बड़े नदी टापुओं में से एक है। गुवाहाटी से माजुली तक का रास्ता ब्रह्मपुत्र नदी के ठीक पैरलेल चलता है और आप पूर्व की ओर बढ़ते हैं।
रास्ता लम्बा है पर बहुत बहारदार है। और हम भी असम को पहली दफ़ा देख रहे थे तो अगलबग़ल रास्ते से आँखें चुराना मुश्किल था। फिर रास्ते में काज़ीरंगा नैशनल पार्क भी आता है वहाँ रुकना भी बनता है। वन और वन्य जीवन के साथ आदमी अपनी दुनिया कैसे चला सकता है आपको यहाँ दिखता है। सफ़र का पहला हॉल्ट हमने यहीं लिया और नाश्ता किया।
माजुली के लिए एक रास्ता तेज़पुर साइड से भी है पर वो बहुत लम्बा पड़ता है। जो छोटा और मेन रास्ता है वो जोरहाट से आता है। जोरहाट छोटा सा टाउन है यहाँ से आप ब्रह्मपुत्र पर बने नीमती घाट पर आते हैं; यहाँ सड़क का रास्ता ख़त्म हो जाता है। नीमती घाट से माजुली तक फ़ेरी लेनी होती है। फ़ेरी आपको माजुली में बने कमलाबाड़ी फ़ेरी पोईंट पर उतारती है। 20 किलोमीटर का डिस्टन्स है, 1 घंटे से ऊपर लग जाता है। . गाड़ी हो या आदमी, या कोई सामान सब का सब फ़ेरी से ही टापू पर पहुँचता है। पर एक बात ध्यान रखने की है कि जोरहाट से माजुली के लिए आख़री फ़ेरी 3 बजे चलती है अगर ये मिस की तो फिर आप अगले दिन का वेट कीजिए। तो हमको तो रात जोरहाट में नहीं बितानी थी इसलिए हम सुबह जल्दी निकले थे। और 2 बजे जोरहाट पहुँच गए थे।
अब नॉर्थईस्ट की एक बहुत ख़ास बात ये भी है कि यहाँ सुबह सूरज बड़ी जल्दी आता है और जितना जल्दी आता है उतना जल्दी चला भी जाता है। कमलाबाड़ी घाट पर उतरकर माजुली में दाख़िल ही हुए थे कि सूरज हमें जाता दिखा। ऐसे सनसेट को ऐसे मिस कर सकते थे तो कुछ देर वहीं रुके। अँधेरा होते होते हम कमलाबाड़ी मार्केट पहुँच गए थे। टेंट लगाने का समय नहीं था तो हमने वहीं एक होमेस्टमें देखा और वहीं रुके।
पहली रात हमने वहीं बिताई। डिनर में असामी थाली खाई। और फिर फैल कर सो गए।
अगले दिन सनराइज़ से पहले ही माजुली देखने का सीन था।
तो अगले पोस्ट में आपको माजुली से मिलायेंगे।😊

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5. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात – तीसरा दिन, माजुली द्वीप की पहली सुबह।

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बोल कर देखें तो ‘माजुली’ शब्द ‘मझले’ के काफ़ी क़रीब सुनाई पड़ता है। ‘मझले’ का मतलब है कोई भी वो चीज़ जो बीच की हो या किन्ही दो चीज़ों के बीच में हो। ऐसी ही कुछ स्थिति है माजुली की – तैरता हुआ नदी का टापू है ब्रह्मपुत्र नदी के ठीक बीच में।
नक़्शे पर देखेंगे तो माजुली द्वीप के दक्षिण में आपको ब्रह्मपुत्र नदी और उत्तर में खेरकुटिया खूटी नाम की धारा दिखेगी। खेरकुटिया खूटी ब्रह्मपुत्र नदी से निकलती है और आगे चलकर फिर उसी में मिल जाती है। यही कारण भी है माजुली द्वीप के इग्ज़िस्टेन्स में आने का – पुराने समय में कभी ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों, ख़ासकर लोहित नदी के दिशा और जगह बदलने की वजह से बना था यह टापू। यहाँ के लोगों और उनकी जीवनशैली की वजह से इसे असम की सांस्कृतिक राजधानी भी कहते हैं। एकदम निराली दुनिया है यहाँ की जिसका अपना इतिहास, कल्चर और अपनी सभ्यता रही है जिसको यहाँ के लोगों ने अपनी ज़िंदगी दाव पर लगा कर बचा रखा है। जीअग्रैफ़िक्ली और सोशली दोनों ही तरीक़ों से ये जगह एहसास कराती है कि आप एक अलग दुनिया में हैं यहाँ जो बाक़ी सारी दुनिया से कटी हुई है और दूर है। एक छोटी सी दुनिया जो अपने आप में बहुत बड़ी है और आप इसमें झाकेंगे तो ये आपको भी समेट लेती है। आप भूल जाते हैं बाक़ी सब यहाँ आकर।
तो जी पिछली शाम हम तो पहुँचे इस फ़्लोटिंग आयलंड पर जो दुनिया का एकमात्र फ़्लोटिंग डिस्ट्रिक्ट भी है। अभी तक ज़्यादा घूमे नहीं थे ना ही लोगों से मिल पाए थे। सुबह का प्लान ये था कि जितना जल्दी हो सके उठें और सूरज उगने से पहले कोई मस्त सा सनराइज़ पोईंट ढूँढें। नॉर्थईस्ट में सुबह जल्दी होती है तो हम लोग सुबह 5 बजने में पंद्रह मिनट पहले ही निकल लिए। जगह के बारे में नहीं पता था तो दिमाग़ लगाया कि तट पर चला जाए, नदी के किनारे।
जहाँ हम रुके थे वहाँ से कमलाबाडी घाट ज़्यादा दूर नहीं था। फटाफट पहुँचे और किनारे खड़ी एक बड़ी सी नाव पर बैठ उगते सूरज का निहाराने लगे। बेस्ट सनराइज़ तो पता नहीं पर ज़िंदगी भर जिसे ना भूल पाएँगे ऐसी एक सुबह देखी। फिर वहीं घाट पर तपरी से चाय पी और कुछ देर वहीं रुके।
बेमिसाल दुनिया है माजुली की। पर अगर हम कहें की अगले 10-15 सालों में यह जगह दुनिया से ग़ायब हो जाएगी तो मानेंगे आप? नहीं ना। हम भी विश्वास नहीं कर पर रहे थे।
पर सच्चाई यही है।
बताएँगे आपको अगली पोस्ट में।🙏🏽

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6. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात – तीसरा ही दिन। माजुली द्वीप के लोग।

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. सनसेट का लुत्फ़ उठा कर, अब हम वापस निकले अपने ठिकाने की ओर। एक तो हमें दिन भर के लिए सभी इंस्ट्रुमेंट चार्ज करने थे और उससे पहले करनी थी पेट पूजा। 7:30 बजे तक हम वापस माजुली मार्केट पहुँच गए। एक मिठाई की दुकान में पूड़ी और आलू की सब्ज़ी मिल रही थी – हमने चाय के साथ लपेट दी। फिर होमेस्टे पहुँचकर सब चार्ज किया, नहाए-धोए और रूम ख़ाली कर निकल लिए माजुली की सैर करने।
बात आप किसी जगह की करें या इंसान की, आप एक बार में किसी को पूरी तरह नहीं जान सकते। तो हमारा इरादा अलग था – कोशिश बस ये थी कि उत्तर-पूर्व भारत से जो मुलाक़ात हो रही थी वो जितनी हो सके उतनी लंबी हो। ज़्यादा से ज़्यादा लोगों से मिलें और उनके साथ बैठें, बातें करें। . माजुली को जानने की बात करें तो इसके इतिहास की कहानी लम्बी है। यहाँ पर सबसे ज़्यादा रहने वाले – मिसिंग, देउरी और सोनोवाल-कछारी जाति के लोग 7वीं शताब्दी में बर्मा(म्यांमार) से चलकर अरुणांचल होते हुए यहाँ आए थे। और फिर यहीं अपने गाँव और क़सबे बना कर रहने लगे। इन ट्राइब्ज़ के अलावा कुछ और असमिया जाति-जनजातियों के लोग रहते हैं पर वे कम हैं।
भारत के ओर गाँव की तरह यहाँ के लोगों का मेन व्यवसाय कृषि है।सौ से ज़्यादा टाइप के धान/चावल की फ़सलों की बुआई होती है। पर साल में बस एक बार ही खेती होती है क्यूँकि गरमियों में तो सब पानी से ट्पा होता है। इसके अलावा मछली पालन, नाव बनाना, शिल्पकारी और मिट्टी के बर्तन व मुखोटे बनाना भी यहाँ के लोगों को अच्छे से आता है। नदी के किनारे बसे होने से ये लोग पैदाइशि तैराक और मछवारे होते हैं। मिसिंग औरतें माहिर शिल्पकार होती हैं और अपने कपड़े ख़ुद बनाती हैं। . बाँस का इस्तेमाल ये लोग – खाने, खाना बनाने, जलाने और घर बनाने में करते हैं। घर की दीवार, दरवाज़े, फ़र्श सभी बाँस के बने होते हैं और छत फूस की। हवा और बारिश से बचाने के लिए दीवारों को मिट्टी और गोबर से लीप दिया जाता है। सभी घर ज़मीन से 3-4 फ़ीट ऊपर बाँस की बल्लियों पर टिके होते हैं ताकि अचानक आइ बाढ़ से बचा जा सके।
नदी से होने वाली परेशनियों को ये लोग अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना चुके हैं। पर परेशानियों के अलावा माजुली एक अलग समस्या से जूझ रहा है। साल दर साल मिट्टी के कटाव से माजुली का साइज़ छोटा होता जा रहा है। और वो दिन दूर नहीं जब यहाँ रहने को जगह ना होगी और यहाँ के लोगों को अपना घर छोड़कर जाना होगा। 😕
आगे बात करेंगे अगली पोस्ट में, माजुली से।🙏🏽

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7. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात -चौथा दिन। माजुली द्वीप की सैर।

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. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात! तीसरा ही दिन। माजुली द्वीप की सैर। . माजुली से अब तक की मुलाक़ात बहुत बेहतरीन रही। सुबह मदमस्त कर देने वाला सनराइज़ देखा तो बाद में मिसिंग लोगों से मिले। उनके जीने के अद्भुत अन्दाज़ और रहनसहन को जांनने का भी मौक़ा मिला। पर किसी जगह का कल्चर, किन्हीं एक तरह के लोगों या, एक सोच से तो नहीं बनता। कल्चर तो अलग-अलग सोच रखने वाले अलग लोगों का साथ मिलकर रहना होता है। . मिसिंग लोगों की तरह माजुली में देउरी जनजाति के लोग भी काफ़ी हैं। इन्हें पुरोहित जाति कहा जाता हैं। इनका लाइफ़-स्टाइल मिसिंग लोगों से मिलता-जुलता है पर इनकी अपनी अलग बोली और अलग त्योहार हैं। मिसिंग लोग ‘आली-आय-लिगांग और पोराग’ त्योहार मनाते हैं तो इन लोगों का मुख्य त्योहार ‘बिहु’ है। सभी त्योहार खेती-बाड़ी से जुड़े होते हैं। त्योहारों में अच्छा नाच-गाना होता हैं और म्यूज़िक के लिए ये अपने ख़ुद के बनाए इंस्ट्रुमेंट इस्तमाल करते हैं। . वैसे यहाँ के जीवन की झलक पाने का सही मौक़ा तो त्योहार हैं। उनके के अलावा यहाँ के ‘सत्र’ देखना ज़रूरी हैं। इनमें आपको माजुली के जीवन, उसकी संस्कृति और वहाँ के लोगों की ज़िंदादिली की छोटी सी झाँकी ज़रूर दिख जाएगी। . ‘सत्रों’ को आप यहाँ के पूर्वजों द्वारा बनाए गए छोटे म्यूज़ीयम भी कह सकते हैं जहाँ पर ये लोग अपनी लोकल भाषा, कला, और जीने के मूल अन्दाज़ को सजो कर रखते हैं। इनकी स्थापना भारत में ‘नवजागरण’ के समय हुई थी। काफ़ी सत्र वैष्णव भक्ति केंद्र भी है पर तब भी अलग ‘सत्र’ की अपनी अलग पहचान होती है। काफ़ी ‘सत्र’ मूर्ति-कला, संगीत और साहित्य के केंद्र भी हैं। 1950 में आए भूकम्प में बहुत से सत्र और काफ़ी गाँव माजुली से टूटकर पानी में जा मिले थे। जिसके बाद से सत्रों की संख्या कम रह गई। . अपने ऊपर लगातार बने हुए ख़तरे को जानते हुए भी लोग यहाँ सालों से ज़िंदगी बसाए हुए हैं। प्रकृति के साथ रहकर जीने की कला को ये लोग बख़ूबी जानते हैं। प्रकृति संग ऐसी बैलेन्स्ड ज़िंदगी जीते हैं जो किसी कला से कम नहीं। और घूमते रहें तो ट्रैव्लिंग आपको ज़िंदगी के ऐसे अनोखे रंग-रूप दिखाती है और आपको अमीर बनाती है। . लोगों से मिलते- मिलते शाम के क़रीब 3 बज चुके थे।अँधेरा होने से पहले आज हमको आपने टेंट्स ज़माने की जगह देखनी थी। घूमंते फिरते हम नदी के उसी छोर पर पहुँच गये जहाँ से सुबह का सनराइज़ देखा था। वहीं ब्रह्मपुत्र के किनारे पर टेंट जमाकर, ढलते सूरज को अलविदा कह, माजुली में दूसरा दिन पूरा किया। . अगली पोस्ट में बताएँगे आगे क्या कुछ हुआ😁 . #bawraybanjarayinnortheast

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8. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात -चौथा दिन। माजुली से कोहिमा।

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. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात! चौथा दिन। माजुली से कोहिमा। . . अब बात करते हैं नॉर्थईस्ट ट्रिप की.. . माजुली में दो रात बिताकर अब टाइम था आगे निकलने का। पिछली रात को जहाँ टेंट लगाया था वहाँ से घाट बस कुछ ही दूर था।प्लान ये था कि सुबह सबसे पहली फ़ेरी ले कर वापस निकल लेंगे जोरहाट के लिए और फिर वहाँ सीधा कोहिमा। सुबह आँख खुली तो सीधा ही क्षतिज दिखा और दिखी दिन की सबसे पहली लालिमा आसमान की। चोथे दिन की मनमोहक शुरूवात के बाद अब टाइम था त्रवेल करने का, पूरे दिन। . माजुली से वापस निकालने का क़तई भी मन नहीं था पर क्या करें आगे नागालैंड नज़र आ रहा था। यहाँ भी नहीं गए थे, किताबों से जाना था कि नागालैंड को ‘Land of Festivals’ भी कहा जाता है। इसलिए हमारा इरादा मेन तो हॉर्न्बिल फ़ेस्टिवल देखने का था। . वापसी का रास्ता बिलकुल वैसे ही है, जैसे आए थे – फिर फ़ेरी से। घाट से पहले ज़ोरहाट और फिर आगे रोड के रास्ते – दीमापुर होते हुए नागालैंड की राजधानी – कोहिमा। माजुली से कोहिमा 243 किलॉमेटर क़रीब है। पूरा दिन हमारा कार में बैठे गया। पूरा दिन असम को निहारते हुए सोच रहे थे कि कितना असीम और अनोखा है असम। सुनहरे सनराइज़-सनसेट के अलावा इसकी भूगोलिक स्तिथि इतनी ज़बर है कि यहाँ आपको बीच, समंदर, प्लेन और पहाड़ सब मिल जाएँगे। इसका बड़ा भाग ब्रह्मपुत्र वैली में फैला है, इसके अलावा बराक वैली का कुछ हिस्सा और मेघालय, नागालैंड से सटे पहाड़ी ऐरिया भी इसमें आते हैं। अभी काफ़ी असम बाक़ी है, कुछ पोस्ट्स बाद फिर वापस आयेंगे!😎 . इधर अँधेरा होने से पहले हम कोहिमा पहुँच गए थे। पूरे रस्ते फ़्रेश अनानास खाने को मिले। पहुँचकर टेंट लगाने का कोई सीन नहीं था तो रात बिताने का जुगाड़ होटल में किया। मशक़्क़त करनी पड़ी पर समझ गए कि हॉर्न्बिल फ़ेस्टिवल के टाइम नागालैंड जाएँ तो सबसे पहले रुकने का जगह पक्की कर लें। टुरिस्ट ज़्यादा होते हैं तो उस समय सब फ़ुल होता है, रुकने की दिक्कत आ सकती है। बाक़ी सब मस्त था..बतायेंगे आगे..।🙏🏽 . . अगली पोस्ट में आपको नागालैंड की राजधानी कोहिमा दिखायेंगे और फिर हॉर्न्बिल फ़ेस्टिवल के लिए निकलेंगे। 🙌🏽🙂 .#bawraybanjarayinnortheast

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9. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात – पाँचवा दिन। कोहिमा शहर से शुरुआत।

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. नॉर्थईस्ट भारत से पहली मुलाक़ात पाँचवा दिन। कोहिमा शहर से शुरुआत। . नॉर्थईस्ट यात्रा का पाँचवा दिन और हम थे नागालैंड की राजधानी कोहिमा में। ब्रह्मपुत्र वैली की समतल-पहाड़ी ज़मीन से नज़ारा बदलकर अब पूरा पहाड़ी हो गया था। पिछले दिन माजुली से कोहिमा पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई तो जगह को देखने का ख़ास समय नहीं मिला। पर रात में रहने के लिए के लिए जगह ढूँढते ढूँढते जगह की एक छोटी सी झलक ज़रूर देखने को मिल गई। सबकुछ बड़ा कूल सा लग रहा था। . एक तो हम वहाँ दिसंबर में भी तो गए थे जो कि नॉर्थईस्ट घूमने का बेस्ट मौसम है, ऊपर से फ़ेस्टिवल वाला महीना भी – हॉर्न्बिल फ़ेस्टिवल और फिर क्रिसमस। रात की रोशनी में पूरा शहर जगमग था। रोड किनारे स्ट्रीट फ़ूड के ढेर सारे ठेले लगे थे जहाँ से उठती लज़ीज़ ख़ुशबू ललचा रही थी। साथ इसके लोकल क्राउड का भी अपना अलग स्वैग था। रात के हिसाब से भी घूमने के नज़रिए से काफ़ी कम्फ़र्टिंग माहोल था तो यहाँ के क़ायल होते हुए समय नहीं लगा। . सुबह आँख खुलते ही सबसे पहले तो हम टेरेस की ओर भागे, यहाँ का सूर्योदय नहीं मिस नहीं करना था। रात को जगह का केवल अहसास ही हो पाया था, नज़रों से नज़ारा दिन के उजाले में कहाँ देखा था! क्या सही सुबह थी आप ख़ुद फ़ोटो में देख लीजिए। सुबह की रोशनी में नहाते हुए तो कोहिमा एकदम कोहिनूर दिखता है! . नौ बजे तक हम खा-पीकर निकल लिए हॉर्न्बिल फ़ेस्टिवल देखने के लिए जो कि कोहिमा से कुछ 10-12 किलोमीटर दूर हॉर्न्बिल हेरिटिज कॉम्प्लेक्स में होता है। हमारा पहला मक़सद आख़िरकर हॉर्न्बिल फ़ेस्टिवल देखना ही था क्यूँकि हमारे हिसाब से किसी भी जगह और वहाँ के लोगों के स्वभाव को जांनने का सबसे सही तरीक़ा वहाँ के त्योहारों में शामिल होना है। . वैसे भी नागालैंड अपने त्योहारों के लिए फ़ेमस है तो कैसे छोड़ते। पर यहाँ के लोगों के आदर भाव और वेल्कमिंग नेचर की भी जितनी कहें वो कम होगा। यह बात कोहिमा जाकर साफ़ पता लगती है। बाक़ी आप वहाँ जाकर जब आइन्स्टायन, कलाम, एमीनेम और चे से रोड पर मिलेंगे तो यहाँ की विचारधारा से भी मुख़ातिब होंगे। 😁 बाक़ी अभी रास्ते में हैं, हॉर्न्बिल पहुँचेंगे तो दिखाएँगे कि वहाँ क्या कुछ हुआ। पर अगली पोस्ट में.. 🙏🏽 . #bawraybanjarayinnortheast

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