Mustard fields

Nainsukhpura, Rewari – घंटे भर में दिल्ली की भसड़ से दूर, एक मैदानी गांव का सुकून

देसा म्ह देस हरियाणा, जित दूध-दही का खाणा।

सीधे-साधे लोग, सिंपल लिविंग और साफ़-सुथरा खाना – हरियाणा को सीधे तौर पर जानने के लिए इतना समझ लेना काफी है. पूरे तरीके से एक्सपीरियंस करना भी मुश्किल बात नहीं, दिल्ली के ठीक बराबर में जो है. दुनिया भर की पैसेंजर ट्रेनें हैं, दिल्ली से राजस्थान, पंजाब जाती कोई-सी भी ट्रैन पकड़ लो,आप पहुँच जाओगे। जैसे हमने पालम से रेवाड़ी जाने वाली दोपहर 2:40 की ट्रेन पकड़ी और घंटे भर में दिल्ली शहर की भसड़ से दूर खेतों में जा पहुंचे. दिल्ली शहर और इसके आस-पास बसे गावों में रिश्ता क्या है, यह जानने के लिए आपको लोकल पैसेंजर ट्रेनों में सफर करके देखना चाहिए. आपको दिखेगा, कैसे यहां से हज़ारों की भीड़ हर सुबह दिल्ली शहर की तरफ निकलती है, जो कि इस शहर को कायम रखने में अपने हिस्से का योगदान देती है.

चलती ट्रैन से दिखाई दिया सनसेट और सरसों के खेतों का खतरनाक खेल.

हमारी ट्रेन अपने निर्धारित समय से चल रही थी, 5-10 मिनट आगे पीछे की बात अलग, भारतीय रेल प्रणाली जो है! दोपहर को भी प्लेटफार्म पर थोड़ी भीड़ थी. ट्रेन में चढ़कर, थोड़ा खिसकते- खिसकाते हम एक कोना पकड़कर खड़े हो गए. डिब्बे में कुछ लोग ज़मीन पर बैठे ताश खेल रहे थे, कुछ दूध की खाली बाल्टियों को खिड़कीयों पर टांगने में लगे हुए थे, कुछ कॉलेज स्टूडेंट्स और कुछ गुडगाँव, एयरपोर्ट पर ड्यूटी करके वापिस आ रहे थे. लगभग सभी डेली-पैसेंजर्स थे. डेली ट्रैन से ट्रेवल करके ये लोग रेल-यात्राओं के एक्सपर्ट हो जाते हैं. ट्रेनों की गतिविधि, स्टेशनों की हालत और देश के हालात, सब इनसे पूछ लो। रोज़ सफर के समय यही बातें हो रही होती हैं.

हम हरियाणा के रेवाड़ी टाउन से होते हुए अपने गांव के लिए बढ़ चले . रेवाड़ी से कुछ 18 KM दूर, एक छोटे से गांव सिहास (नैनसुखपुरा) में पहुंचना था. यहाँ पहुँचने का रास्ता सीधा है — रेवाड़ी स्टेशन के पास से लोकल टेम्पो 20 रूपए में आपको गांव तक पहुंचा देंगे. वैसे, आपको पता है कि नहीं, रेवाड़ी टाउन गुरुग्राम (गुडग़ाम) की तरह अब दिल्ली – NCR में आता है. बाकी, गांव सुविधायों के साथ भी अभी तक भी गांव ही है, हम बावरे बंजारों का एक घर यहां भी है.

सिहास में अपने घर की छत से दीखता खेतों का नज़ारा।

स्टेशन से उतारकर हम रेवाड़ी के कुछ पुराने सिंगल स्क्रीन थिएटर देखने में लग गए,गांव तक जाने के लिए सारे टेम्पो निकल गए. शाम पांच बजे वाली हरयाणा रोडवेज, ारेवाड़ी देकर शाम साढ़े पांच बजे उस टेम्पो ने हमे गांव से कुछ 6 km दूर उतारा। चारों तरफ गेहूं और सरसों के हरे पीले खेत लहरा रहे थे. सिंचाई का टाइम था, सभी खेतों में ट्यूबवेल से पानी दिया जा रहा था. कुछ सर्दी का मौसम और कुछ पानी से उठती ओस, शाम सुहावनी होती जा रही थी. यहाँ से फिर एक टेम्पो के लिए वेट करना पड़ता। हमने सोचा पैदल ही चला जाए, अगर रस्ते में कोई साधन मिल गया तो ठीक वरना ऐसे ही पहुँच जायेंगे.

Rewadi Jhajhar Highway
रेवाड़ी झज्झर हाईवे, टहना पे.

अपनी किस्मत मेहरबान थी, आधे रस्ते में गांव की तरफ जाता एक टेम्पो मिल गया. थोड़ा आगे चलते ही एक ताई ने टेम्पो रोकने के लिए हाथ दिया। टेम्पो रुक गया. पीछे सीट फुल थी, हमने सोचा उठ जाएं, हम तो पीछे खड़े होकर भी जा सकते हैं. उठने ही वाले थे कि ताई हाथ उठाकर हमें मना करती हुई आगे ड्राइवर के साथ बीड़ी और लगा के बैठी थी ताई. आपके हिसाब से तो नहीं पता, हमको तो उधर असल वुमन एम्पावरमेंट दिखा. अँधेरा होने तक हम सिहास पहुंच गए. दिन ढल चुका था तो क्या ही दिखना था. गांव में वैसे भी लोग जल्दी काम ख़तम करके, खा-पीकर, सोने की तयारी लग जाते हैं. सुबह जल्दी उठकर दुबारा काम पर भी तो लगना होता है.

खेतों में एक खूबसूरत शाम.

ज्यादा बड़ा गांव नहीं है, कुछ सौ एक घर होंगे. गांव के बगल से हरियाणा के बड़ी नहरों में से एक निकलती है पानी मटमैला है, सिंचाई और जानवरों क लिए. पीने के लिए, सरकारी और ट्यूबवेल का पानी है. मंदिर,मस्जिद, आंगनवाड़ी, स्कूल के साथ गांव के बीच में गुच्छों में घर हैं. यह सब पुराने पत्थरों के बने हुए हैं, ईंटो के नए घर आपको गांव के बाहर बाहर मिलेंगे। जहाँ से आप नज़र दौड़ाओ तो सिर्फ खेत ही खेत हैं नज़र आएंगे। खेतों में एक फसल धान, गेहूं, सरसों, साग- सब्जियां तो दूसरी फसल, ज्वार, बाजरा, दालें और कपास होती है. खेतों में अपना खाने को उगाओ और सुकून से रहो. सुबह, दोपहर, रात हर वक़्त लोग अपने अपने कामों में लगे मिलेंगे। काम नहीं होगा तो,साथ बैठे, ताश खेलते- खेलते बातें करते मिलेंगे। शहर की तुलना में तो बहुत ज्यादा शांति मिल जाएगी. एनसीआर का हिस्सा होने की वजह से इंटरनेट वाईफाई तक की सुविधा आपको मिल जाएगी, पर शहर वाली भसड़, प्रदूषण, शोर-शराबा और भगदड़ नहीं मिलेगी।

सुबह जब घर से निकलने तो हमारे हाथ में कैमरा देखकर पूछताछ चालू हो गई. गांव जाना टाइम टू टाइम होता है. काका को पता चला की औली असम से है तो उनके बिच शुरू हो गई बात चीत नार्थईस्ट स्टेट्स को लेकर।काका जब बी एस एफ में थे तो नार्थ ईस्ट में उनकी पोस्टिंग त्रिपुरा में रही थी काफी समय के लिए. हमलोग बातें करते करते खेतों की तरफ़.घूमने निकल लिए.
यहाँ आपको वादियाँ,झरने या नदियाँ तो नहीं मिलेंगी, पर प्रकृति का जीवनदेयी प्रारूप जरूर दिख जाएगा, जिसकी वजह से यहां इंसानी जीवन है। सुबह उगता सूरज यहाँ भी आपको उतना ही एक्साइटिंग और वेलकमिंग दिखेगा जितना आपको भारत के किसी भी पहाड़ी गांव में दिखे.

Sunrise in Rewari Haryana
सुबह घूमने गए तो ये सूरज लेकर आए.

कामधाम , खेलकूद, खेत- खलिहान, सिंपल और देसी लाइफस्टाइल के साथ एक चीज़ और सिंपल मिलेगी आपको यहां। यहाँ का साधारण-सा खाना, कुल तीन से चार मसाले ही लगते होंगे, बाकी तो बसदूध, दही और घी होता है, पेल के.इसी खाने की वजह से हरियाणा के लोग अब भी मिट्टी और पशु पालन से बखूबी जुड़े दिखते हैं।

खेतों काू चक्कर लगा कर वापस आए तो मौसी ने खाने-पीने की तैयारी कर दी थी. सर्दियों में सबसे बेहतरीन मिलेगा आपको हरियाणा में — चूल्हे पर सिकी बाजरे की रोटी, घर का नूणी घी, दही, लाल- मिर्च – लहसन की चटनी, बथुए का रायता और साथ में लस्सी।सिंपल खाना है, पर इतना हैवी कि खाकर उठना मुश्किल हो जाता है. अगर खाना खाकर आप धुप में पसर गए तो आपका उठ पाना नामुमकिन.

Lavish food of Haryana
चूल्हे पे बनी बाजरे की रोटियों के साथ, नूनी घी अउ रायता चटनी पेलते हम.

देश-विदेश में AirBnB आजकल ‘एक्सपीरियंस ट्रेवल’ चला रहा है. किसी जगह को सही से जानने के लिए वहां के तौर- तरीकों के साथ रहना, वहां की सभी एक्टिविटीज में हिस्सा लेना, वगैरा- वगैरा। तरह- तरह का खाना और नई चीज़ें एक्सपीरियंस करने को मिलें तो क्यों न जॉइन करे. अपने गांव का चक्कर हम लोग अक्सर लगाते रहते हैं, घंटे की भर की दूरी पर ही तो है दिल्ली वाले ठिकाने से. घंटे भर में दुनिया बदल जाती है, दिल्ली की भसड़ से गांव का सुकून और शान्ति। भारतीय पहाड़ी जीवन की बात करें तो ‘अद्भुत’ जबान पर आता है, और प्लेन्स की करें तो ‘सरल और शांतिपूर्ण’.

Sunset in Rewari
बाजरे की रोटियों का नशा शाम ढलने तक ही उतरा।

यह था एक वीकेंड गांव में लगे चक्कर का किस्सा, यात्राएं तो और भी हुई हैं, बताते रहेंगे।