5 अगस्त बीते अभी कितने ही दिन हुए हैं — इधर भारत सरकार ने लद्दाख और जम्मू कश्मीर को बाँटा और उधर इंडियन आर्मी चीफ़ ने फ़ट प्रोपोज़ल डाल दिया कि सियाचिन टूरिस्ट्स के लिए खुलना चाहिए। जम्मू कश्मीर के बवाल के नीचे ये बात दब गई और कल यानी 21 अक्टूबर, 2019 को हमारे रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने जब यह ट्वीट किया कि सियाचिन को टूरिस्ट्स के लिए खोल दिया गया है तो, दुनिया भर की ट्रैवल फ्रैटर्निटी में उथल पुथल मच गई.
Ladakh has tremendous potential in Tourism. Better connectivity in Ladakh would certainly bring tourists in large numbers.
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) October 21, 2019
The Siachen area is now open for tourists and Tourism. From Siachen Base Camp to Kumar Post, the entire area has been opened for Tourism purposes.
जो सियाचिन देखने के सपने देखते थे, उनसे लेकर जो बस सियाचिन को देश प्रेम झाड़ने का ज़रिया मानते हैं, उन तक — कल शाम से सियाचिन जाने के कितने सपने सजते चले गए. साथ ही, हर मुद्दे और पहल पर डिबेट करने का राष्ट्रीय रोज़गार भी शुरू हो गया – कितना सही है, कितना गलत है से लेकर ग्लोबल वार्मिंग के असर तक – इतना ज्ञान पेला जा रहा है कि हमने सोचा कि चलो थोड़ा पढ़ा जाए और जाना जाए कि आखिर सीन है क्या सियाचिन का. तो सबसे पहले ये पता किया गया कि सियाचिन है क्या, कहाँ है, क्यों है और फिर ये सारा बवाल समझ आया. तो जो हमारी समझ में आया, वही आपसे शेयर कर रहे हैं। शुरुआत करते हैं क्या से:
आख़िर है क्या सियाचिन
बाल्टी भाषा में सिया का मतलब गुलाब है. जी, इस रीजन में जंगली गुलाबों को ‘सिया’ कहा जाता है. और चन का मतलब है सिफ़्फीसिएंट होना. तो मतलब यह कि सियाचिन का मतलब आप ‘रोज़ ग्लेशियर’ समझ सकते हैं. हालाँकि, यहाँ बर्फ़ की सफ़ेदी, दिन में आसमान के नीले और रात में इसके अँधेरे के अलावा कोई दूसरा रंग आपको शायद ही देखने को मिलेगा। सियाचिन, वेस्ट में सल्तोरो रिज और ईस्ट में कराकोरम रेंज के बीच में एक ग्लेशियर है. टेम्परेचर यहां -70 तक चला जाता है, और कुछ पीक्स तो 25,000 फ़ीट तक ऊंचे हैं. इसे दुनिया का थर्ड पोल भी कहा जाता है और जैसा कि सबको पता है – “this is the highest battle filed in the world”. किसी नॉन पोलर रीजन में यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है. वैसे, 76 किलोमीटर लम्बा यह ग्लेशियर 110 मीटर/ईयर की स्पीड से पिघल रहा है. नुब्रा नदी सियाचिन ग्लेशियर का पानी लेकर श्योक नदी में डाल जाती है और फिर इस तरह से सियाचिन का पानी इंडस नदी तक पहुंच जाता है (श्योक नदी आगे जाकर इंडस नदी में मिल जाती है). बाकी आप ये मैप देखकर समझ सकते हैं.
सबसे पहले कौन गया?
ऐसे समय में जब लगभग आधी दुनिया में महिलाओं को वोट देने के काबिल नहीं माना जाता था, एक अमरीकी जियोग्राफर, कार्टोग्राफर, और ट्रैवल राइटर Fanny Bullock Workman ने अपने पति के साथ इस ग्लेशियर को एक्सप्लोर किया था. साल 1899 से लेकर 1908 तक Fanny अपने पति William Hunter Workman के साथ हिमालय और काराकोरम के चक्कर लगाती रहीं और फाइनली 1911 – ‘12 में इन्होने चुना इस रीजन का सबसे बड़ा ग्लेशियर – The Siachen जिसे Rose Glacier के नाम से भी जाना जाता था. लगभग 2 महीने तक चले इस एक्सप्लोरेशन को Fanny ने ही लीड किया था!
सियाचिन ग्लेशियर को बेटर समझने के लिए आप प्रशांत (Kiki) सर का ये ब्लॉग पढ़ सकते हैं!
सियाचिन को टूरिज्म के लिए खोलने का आईडिया उतना भी नया नहीं है. 2007 से ही NDA, NCC, IMA और चैल मिलिटरी स्कूल की टीमें यहाँ ट्रेकिंग पर आती रही हैं और यह बात काफी समय से चर्चा में थी कि जब ये लोग आ सकते हैं तो, कोई और क्यों नहीं। स्पेशली तब जब आज के जमाने में एडवेंचर टूरिज्म इतना बड़ा मार्केट बन चुका है.
आईये, एक नजर मारते हैं सियाचिन में टूरिज़्म आने से पैदा होने वाली ऑपर्चुनिटीज़ पर
- सासेर ला होते हुए ग्लेशियर से DBO/तांग्से तक ट्रेक किया जा सकता है
- इस इलाके में वाइल्डलाइफ सैंकचुरीज़ बनाए जा सकते हैं – स्नो लेपर्ड, आईबेक्स जैसे तमाम जानवर अभी आपको खुले में घूमते मिलेंगे
- लोकल लोगों के लिए कमाई और ऑफकोर्स, सरकार के लिए तगड़ी रेवेन्यू जेनरेशन
- साथ ही, भारत के युवाओं के लिए अपनी सेना को इतने करीब से ऐसे चैलेंजिंग कंडीशंस में तैनात देखना अपने आप में बहुत इंस्पायरिंग है. ये जाकर देख पाना कि अपने देश की आर्मी और एयरफ़ोर्स ऐसे सब-ह्यूमन कंडीशंस में कितनी कुशलता से डटी है, हमें हमारी ताकत और क्षमताओं पर भरोसे को और कायम करती है.
हालाँकि, यह सब दूर से देखने और सुनने में बेहद मज़ेदार और इंस्पायरिंग है, लेकिन ज़रूरी है कि इसके डाउन साइड को भी अच्छी तरह से समझ लिया जाए. सियाचिन जैसे रीजन्स पर ऐसे किसी भी ह्यूमन एक्शन का बहुत सिग्नीफिकेंट असर होता है. सरकार और सिस्टम को जिन चीज़ों के लिए तैयार होना चाहिए, वो कहीं से भी नेगोशिएबल नहीं है.
अब देखते हैं कि इसका नेगेटिव इम्पैक्ट क्या क्या हो सकता है?
- सबसे बेसिक हैं एनवायर्नमेंटल हैज़ार्डस! साफ़ सीधा हिसाब है – टूरिज्म से पैदा होने वाले कचरे का क्या होगा? अभी सिर्फ़ आर्मी के होने से लगभग 1000 किलो कूड़ा रोज़ पैदा हो रहा है और जनवरी 2018 से आर्मी 130 टन कूड़ा नीचे ला पाई है. तो सोचिए कि जब इतने मास लेवल पर इंसान यहाँ से वापस आएगा तो क्या कुछ छोड़ कर आएगा. रिज़ल्ट – ग्लेशियर पिघलने की स्पीड बढ़ जाएगी और यह नेग्लेक्ट या ओवरलुक करने वाली बात कतई नहीं है.
- जब टूरिस्ट इस लेवल के एडवेंचर पर पहुंचेंगे तब दुर्घटनाएं भी होंगी। रेस्क्यू के लिए कौन आएगा? आर्मी! अब जो यूनिट पहले से ही इतनी ज़्यादा ओवर स्ट्रेस्ड है, उसपर इसका बोझ डालना कितना सही होगा? जहां खाने पीने और बेसिक एमेनिटीज के लिए डॉक्यूमेंट्री बन जाने लायक काम होता है, वहां टूरिज़्म के लिए लगने वाले लॉजिस्टिक सपोर्ट का बर्डन किस पर पड़ेगा?
- सियाचिन एक बैटल फ़ील्ड है. यहां आर्मी अपने हिसाब से रह रही है. टूरिस्ट आने की वजह से कितने नए नियम और कानून बनाने होंगे!
- और हाँ, परमिट सिस्टम भी ज़रूर ही होगा! तो इसके भी लॉजिस्टिक रिक्वायरमेंट्स, मसलन चेक पोस्ट्स, चेक करने के लिए अफ़सरों की तैनाती भी होगी. तो जो काम करने के लिए ऐसे हालत में ये अफ़सर पोस्ट किए गए थे, वह छोड़ के इन्हें ये सब काम करना पड़ सकता है.
तो जी कुल मिलाकर देखा जाए तो मामला यहीं फंसता है कि हम कितने तैयार हैं! रेस्पोंसिबल ट्रेवल और ट्रैकिंग को लेकर हमारी अवेयरनेस कितनी है? स्टेट और बाकी सभी स्टेक होल्डर्स से हमें ये सवाल पूछने होंगे। सिर्फ डंपिंग यार्ड या डस्टबिन लगा देना कभी भी सोल्यूशन नहीं होता है. सियाचिन जैसे रीजन में टूरिज़्म अलाव करने की जो कीमत है, वह प्रकृति को चुकाने के लिए क्या हमारे पास नीति या नियत है?
आपको क्या लगता है? नीचे कमेंट्स में अपन बात कर सकते हैं!